कोलकाता : दूध को आदर्श पोषण माना जाता है। लगभग हर घर में दूध पीना बचपन से ही लोगों की आदत में शामिल होता है लेकिन आजकल लोग ऐसी शिकायत करते हुए पाए जाते हैं कि दूध पीने के बाद वे उसे पचा नहीं पा रहे हैं। कोलकाता के लोगों की इस समस्या को समझने के लिए क्राउनइट सर्वेक्षण किया गया, जिसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
कोलकाता के हर 3 में से एक परिवार का 1 सदस्य है लैक्टोस इन्टॉलरेंट
‘लैक्टोस इन्टॉलरेंस – कोलकाता इंसिडेंस’ शीर्षक वाला क्राउनइट द्वारा यह सर्वेक्षण कोलकाता की आबादी में लैक्टोस इन्टॉलरेंट के मामलों का आकलन करता है और लैक्टोस इन्टॉलरेंस से पीड़ित लोगों के जनसांख्यिकीय या डेमोग्राफ़िक प्रोफ़ाइल का गहन निरीक्षण प्रस्तुत करता है।
मोबाइल-आधारित इस ऑनलाइन सर्वेक्षण से पता चलता है कि कोलकाता के हर 3 में से 1 परिवार का कम-से-कम एक सदस्य मानता है कि वह लैक्टोस इन्टॉलरेंट है।
क्या होता है लैक्टोस इन्टॉलरेन्ट
दूध पीने के बाद पेट दर्द, गैस, मतली जैसी शिकायतें होना लैक्टोस इन्टॉलरेन्ट के लक्षण हैं। मेडिकल भाषा में लैक्टोस इन्टॉलरेंस या लैक्टोस पचाने में असमर्थता का मतलब है, वह स्थिति जब मानव शरीर लैक्टेज़ एंज़ाइम बनाना बंद कर देता है (या पर्याप्त मात्रा में नहीं बनाता है)। लैक्टेज़ एंज़ाइम (जिसे बीटा-गैलेक्टोसिडेस भी कहते हैं) दूध में मौजूद लैक्टोस नाम के प्राकृतिक कार्बोहाइड्रेट को पचाने के लिए ज़रूरी होता है। इसकी कमी से दूध और दूध से बने अन्य उत्पाद खाने के बाद पाचन क्रिया में परेशानी आ सकती है।
सर्वेक्षण में क्या आया सामने
सर्वेक्षण के मुताबिक लैक्टोस इन्टॉलरेंट लोगों में दूध पीने के बाद उबकाई / मतली आना, पेट फूलना, उल्टी आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं। साथ ही, इसकी वजह से 31% परिवारों ने दूध पीना सीमित या बंद कर दिया है। लेकिन आहार में से दूध हटाने से कई स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं – जैसे, 59% लोगों ने कैल्शियम की कमी, विटामिन की कमी, इत्यादि, समस्याओं के बारे में रिपोर्ट किया। जबकि बहुत से लोगों में हड्डियों से जुड़ी समस्याएं होने की संभावना हो जाती है।
लैक्टोस इन्टॉलरेंट परिवारों की एक बड़ी संख्या 70% – ने इस समस्या के लिए डॉक्टरी परामर्श लिया और 39% को दूध के विकल्प ढूंढने में मुश्किल का सामना करना पड़ा है।
किस उम्र के लोग होते हैं शिकार
लैक्टोस इन्टॉलरेंस की समस्या हर उम्र के लोगों में पाई जाती है। हालांकि, बच्चों में लैक्टोस इन्टॉलरेंस की शिकायत ज़्यादा परेशानी की बात है क्योंकि माता-पिता को चिंता रहती है कि सीमित या कम मात्रा में दूध पीने से बच्चों में पोषण में कमी हो सकती है, जिसका असर उनके विकास पर पड़ सकता है। वहीं, वयस्कों की बात करें तो देखा गया है कि वे दूध का सेवन सीमित या कम कर देते हैं और अपनी पोषण-संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे विकल्पों का प्रयोग करने लगते हैं। ऐसे लोगों के लिए लैक्टोस फ्री दूध या प्लांट-आधारित दूध जैसे विकल्प ही उपलब्ध हैं। यह दोनों विकल्प सामान्य दूध से महंगे होते हैं और हर जगह उपलब्ध भी नहीं होते।