भारतीय विदेश सेवा में सी.बी. मुथम्मा का नाम बहुत इज्जत के साथ लिया जाता है। वे भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास करने वाली पहली महिला होने के साथ विदेश सेवा में शामिल होने वाली पहली महिला और आगे चलकर भारत की पहली महिला राजदूत बनीं। इसके साथ ही उन्हें भारतीय सिविल सेवा में लैंगिक समानता के लिए लंबा संघर्ष करने के लिए भी जाना जाता है।
कर्नाटक के विराटपेट में 24 जनवरी 1924 को जन्मीं मुथम्मा के चेन्नै के महिला क्रिश्चियन कॉलेज से ट्रिपल गोल्ड मेडल के साथ स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद प्रेसिडेंसी कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। 1948 में वे यूपीएससी की परीक्षा में टॉप कर भारतीय सिविल सेवा में शामिल होने वाली पहली महिला अधिकारी बनीं। 1949 में वे भारतीय विदेश सेवा में आई। वे भारत की पहली महिला राजदूत बनीं। 02 अगस्त 1970 को उन्हें हंगरी का राजदूत नियुक्त किया गया था।
सेवानिवृत्ति के बाद वे महिला अधिकार कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहीं। लैंगिक भेदभाव के खिलाफ वे मुखर रहीं। उन्होंने इसे लेकर पुस्तक भी लिखी और अनाथ बच्चों के स्कूल की स्थापना के लिए दिल्ली में अपनी 15 एकड़ जमीन दे दी। 85 वर्ष की उम्र में मुथम्मा का निधन हो गया।