हास्य-व्यंग्य के अहम हस्ताक्षर काका हाथरसी के जीवन में 18 सितंबर का खास स्थान है। 18 सितंबर 1906 को जन्मे काका हाथरसी ने 18 सितंबर 1995 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
उत्तर प्रदेश के हाथरस में पैदा हुए काका हाथरसी का असल नाम प्रभुलाल गर्ग था। नाटकों में शुरू से दिलचस्पी रखने वाले प्रभुलाल गर्ग ने अग्रवाल समाज के एक कार्यक्रम के दौरान आयोजित नाटक में काका का किरदार निभाया। यहीं से वे इतना मशहूर हुए कि सभी उन्हें काका ही कहने लगे। उन्होंने इसी नाम को अपनाने का फैसला किया। साथ ही अपनी जन्मभूमि हाथरस को भी अपने नाम के साथ जोड़ा। इसके साथ शुरू हुई काका हाथरसी की साहित्यिक यात्रा- आए जब दल बदलकर नेता नंदूलाल/ पत्रकार करने लगे ऊलजलूल सवाल।
काका हाथरसी हिंदी काव्य यात्रा के उस दौर में पैदा हुए जो शीर्षकाल माना जाता है। हिंदी लेखन की हर विधा में दर्जनों नामों ने अपने दौर को प्रभावित किया लेकिन काका हाथरसी का अपना स्थान है। व्यंग्य का उनका मकसद केवल मनोरंजन नहीं बल्कि सामाजिक व राजनीतिक कुरीतियों की तरफ ध्यान आकृष्ट करना और उसके खिलाफ जनमत तैयार करना होता था-`अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद/देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद/ अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट/ मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोर्ट/ अंग्रेजी से प्यार है हिंदी से परहेज, ऊपर से हैं इंडियन भीतर से अंगरेज।’