जम्मू-कश्मीर रियासत के आखिरी शासक महाराजा हरि सिंह का 26 अप्रैल 1961 को 65 वर्ष की उम्र में हृदयाघात से मुंबई में निधन हो गया था। आखिरी समय में परिवार का कोई सदस्य उनके साथ मौजूद नहीं था। इकलौता पुत्र विदेश में और पारिवारिक तनाव की वजह से धर्मपत्नी वर्षों से अलग रह रही थीं।
अपनी रियासत से बेदखल होने का दर्द उन्हें जीवन के आखिरी करीब दो दशकों तक सालता रहा था। कश्मीर से विदा होने के बाद महाराजा हरि सिंह का अधिकतर समय मुंबई में बीता, जहां से वे लंबे समय तक विदेश यात्राओं पर जाते-आते रहते थे।
काफी तड़क-भड़क वाला जीवन जीने वाले महाराजा हरि सिंह का 1925 में जब राज्याभिषेक हुआ था तो कहते हैं कि उस समय 25-30 लाख रुपये खर्च किये गए थे। वे स्वयं हीरे-जवाहरात के आभूषणों से लदे थे और उनके पसंदीदा घोड़े व हाथी को भी आभूषणों से सजाया गया था। बड़ी संख्या में देशी-विदेशी मेहमान समारोह में शामिल हुए। उन्हें राजगद्दी अपने चाचा महाराजा प्रताप सिंह से विरासत में मिली थी।
कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी। 1925 में डोगरा राजपूत वंश के राजा हरि सिंह कश्मीर की गद्दी पर बैठे। करीब 40 लाख की आबादी वाले कश्मीर की रियासत की सीमाएं अफगानिस्तान, रूस और चीन से लगती थी। इसी वजह से इसका अहम रणनीतिक महत्व था।
महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत की बेहतरी के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिये जिसमें सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाना, बाल विवाह पर रोक के कानून सहित दूसरे निर्णय शामिल हैं। जिस दौर में राजा हरि सिंह ऐसे फैसले ले रहे थे, वे अपने समय से बहुत आगे की सोच को दर्शाते हैं।
1947 में जब भारत आजाद हो रहा था तो ब्रिटिश राज ने तमाम रियासतों के सामने भारत या पाकिस्तान में विलय की पेशकश की। जिसमें कश्मीर रियासत भी शामिल थी लेकिन महाराजा हरि सिंह स्विटजरलैंड की तर्ज पर कश्मीर को भी स्वतंत्र रियासत के रूप में देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दोनों ही देशों में शामिल होने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर कोई देश उनके खिलाफ शक्ति का इस्तेमाल करता है तो वे अपनी राय बदल सकते हैं।
महाराजा अपने इस फैसले पर कायम रहे। जब पाकिस्तानी सेना ने हथियारबंद कबायलियों के भेष में कश्मीर पर हमला कर दिया तो महाराजा हरि सिंह 25 अक्टूबर को जम्मू पहुंचे जहां 26 अक्टूबर को उन्होंने भारत में विलय के लिए संधि पत्र इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर दिए।
अन्य अहम घटनाएंः
1920ः महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम का निधन।
1982ः प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक मलयज का निधन।
1987ः फिल्म निर्देशक, छायाकार और लेखक नितिन बोस का जन्म।
1987ः संगीत निर्देशक शंकर रघुवंशी का निधन।
2010ः राजस्थान की राज्यपाल रहीं प्रभा राव का निधन।