चंद्रशेखर आजाद। यह नाम सामने आते ही स्वतंत्रता आंदोलन का वह स्वर्णिम पृष्ठ सामने आता है, जिस पर एक बेमिसाल कहानी दर्ज है। यह कहानी चंद्रशेखर आजाद की है। मध्यप्रदेश में तत्कालीन झाबुआ जिले के भाबरा गांव (अब चंद्रशेखर आजाद नगर) में पैदा हुए चंद्रशेखर तिवारी सिर्फ 15 साल की उम्र में चर्चा में आ गए। गांधी जी से प्रभावित यह युवक गिरफ्तार हुआ। कोर्ट में जज के पूछने पर अपना नाम आजाद, पिता का स्वतंत्रता और निवास का पता जेल बताया। उसे 15 कोड़े मारने की सजा हुई तो हर कोड़ा लगने पर भारत माता की जय बोलता रहा। फिर तो इस युवक ने कोर्ट में जो अपना नाम बताया था, उसी आजाद के रूप में चर्चित हो उठा।
चौरीचौरा कांड के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो आजाद का उनसे मोहभंग हो गया। उन्होंने मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेशचंद्र बनर्जी से प्रेरणा लेकर मातृभूमि के लिए संघर्ष का अलग रास्ता चुना। रामप्रसाद बिस्मिल. शचींद्रनाथ सान्याल और योगेश चंद्र चटर्जी के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन बनाया। छद्म रूप में अध्यापक बनकर जंगलों में अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लिया। काकोरी में क्रांतिकारी संगठन की जरूरतों और विदेशी सरकार को चुनौती देने के गरज से ट्रेन डकैती को अंजाम दिया गया। बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह और उधर राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई। आजाद ने जीवन भर अंग्रेजी पुलिस और सेना के हाथ नहीं लगने का प्रण कर रखा था। वे भारत मां को आजाद कराने के रास्ते पर चलते रहे।
क्रांति की कहानी बहुत लंबी है, उसमें लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर सांडर्स की हत्या जैसे पड़ाव भी हैं। इस क्रांति यात्रा में 27 फरवरी,1931 का वह दिन आया, जब एक देशद्रोही खूफिया की सूचना पर अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया। एक पेड़ के पीछ खड़े होकर आजाद ने फिरंगियों का मुकाबला किया। उनकी गोलियों से तीन सिपाही मारे गए और कई घायल हो गए। एक तरफ बड़ी संख्या में सिपाही और इधर अकेले आजाद। जब गोलियां खत्म होने लगीं तो जीवन भर आजाद रहने का प्रण लेने वाले चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार ली और मातृभूमि के लिए शहीद हो गये।
उस शहादत स्थल पर मूंछे ऐंठते आजाद की प्रतिमा हर आगंतुक में देश प्रेम का संचार करती है। साथ ही वह अल्फ्रेड पार्क आज प्रयागराज के आजाद पार्क नाम से पहचान रखता है। पार्क में ही स्थित संग्रहालय में आजाद की वह धन्य हो उठी पिस्तौल भी सुरक्षित है।
ट्रेन में बैठे तीर्थयात्री सांप्रदायिक ताकतों के शिकार बने: यही तारीख देश में सांप्रदायिक ताकतों के एक अमानुषिक कृत्य के लिए भी याद की जायेगी। वर्ष 2002 की 27 फरवरी को गुजरात के गोधरा स्टेशन से रवाना हुई साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ज्यों ही आगे बढ़ी, उसे रोक लिया गया। ट्रेन के एक डिब्बे में अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्री सवार थे। उन्मादियों ने ट्रेन पर पथराव करते हुए उस डिब्बे में आग लगा दी। डिब्बे को बाहर से बंद कर दिया गया था। आततायियों की बहशियाना हरकत में आग से 59 लोगों की जान चली गई थी। उस कांड की दिल दहला देने वाली गूंज रह रहकर आज बी सुनाई देती है।
अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं:
1854 : ईस्ट इंडिया कंपनी का झांसी पर कब्जा।
1953 : अंग्रेजी को आसान बनाने के लिए ब्रिटेन की संसद में ‘स्पैलिंग बिल’ का प्रस्ताव पेश।
1990: कुवैत पर इराकी हमले के बाद अमेरिका ने दखल दिया।
1991 : फारस खाड़ी युद्ध में जीत की घोषणा के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने युद्धविराम का ऐलान किया।
1999 : नाइजीरिया में 15 साल में पहली बार असैन्य शासक चुनने के लिए मतदान।
2010 : चिली में 8.8 की तीव्रता का भीषण भूकंप और सुनामी से तटीय इलाकों में भारी तबाही।