इतिहास के पन्नों मेंः 29 जनवरी – ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा’

समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस को याद करते दिमागी कैनवास पर कई छवियां उभरती हैं- फायरब्रांड यूनियन नेता, बड़ौदा डायनामाइड केस में गिरफ्तार अभियुक्त, बेड़ियों में जकड़े जॉर्ज की तस्वीर वाला चुनावी पोस्टर।

जनता सरकार में कोकाकोला के खिलाफ अड़ जाने वाला उद्योग मंत्री, मोरारजी देसाई की सरकार में फूट के लिए जिम्मेदार नेताओं में शामिल, पोखरण परमाणु परीक्षण और कारगिल युद्ध के समय देश के रक्षामंत्री।

केंद्रीय मंत्री रहते जिनके घर का दरवाजा लोगों के लिए कभी बंद नहीं हुआ, ऐसा राजनेता जो अपने हाथों से खुद के कपड़े धोता था और जिन्होंने रक्षामंत्री रहते 18 बार 6600 मीटर ऊंचे सियाचिन ग्लेशियर का दौरा कर पहली बार कहा कि हमारा असली दुश्मन चीन है।

आखिर में अपने ही खड़ा किए गए दल से टिकट न मिलने से हताश जॉर्ज का बिहार की मुजफ्फरपुर सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने ही अखाड़े में चित हो जाना, दरअसल एक अनथक योद्धा के राजनीतिक सफर का त्रासद अंत था।

हालांकि बाद में उनके दल ने राज्यसभा में उनके प्रवेश का रास्ता तैयार किया, लेकिन तब तक जॉर्ज बेनूर हो चुके थे। जीवन में 9 बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले जॉर्ज सिर्फ एकबार राज्यसभा के सदस्य तभी बने जब दूसरा रास्ता नहीं था। 29 जनवरी 2019 को सियासत के इस शाश्वत विद्रोही का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

03 जून 1930 को जन्मे पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म कर्नाटक के मंगलुरू में हुआ। पिता ने उन्हें 16 साल की उम्र में पादरी बनने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा था लेकिन उनका मन नहीं लगा तो रोजगार की तलाश करते बंबई पहुंच गए। तब उनकी उम्र थी 19 साल। हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली और कोंकणी भाषाओं के जानकार जॉर्ज का जीवन क्षेत्र व्यापक रहा है। राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले जॉर्ज के जीवन से जुड़ी वो घटनाएं, जिसने उन्हें राष्ट्रीय राजनेता के रूप में गढ़ा।

जब थम गयी थी मुंबई- बात 1973 की है जब जॉर्ज ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के अध्यक्ष बने और उनके नेतृत्व में संगठन ने फैसला लिया कि रेलकर्मियों की वेतन बढ़ोतरी की मांग को लेकर हड़ताल की जाए। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोऑर्डिनेशन कमेटी बनायी गयी और 8 मई 1974 को हड़ताल शुरू हो गयी। इस हड़ताल में 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया।

कई दूसरी यूनियन इसमें शामिल हो गयी और कई ने समर्थन दिया। टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन, ट्रांसपोर्ट यूनियन इनमें प्रमुख थीं। मद्रास की कोच फैक्ट्री के करीब 10 हजार मजदूर हड़ताल के समर्थन में सड़कों पर उतर गए। बिहार के गया में रेलकर्मियों के परिवार ट्रैक पर उतर आए। मुंबई की तो जैसे रफ्तार ही थम गयी।

हड़ताल के अखिल भारतीय असर को देखते हुए सरकार को सेना बुलानी पड़ी। इंदिरा गांधी सरकार ने आंदोलनकारियों से सख्ती से निबटने का फैसला किया और लगभग 30 हजार से ज्यादा नेताओं को गिरफ्तार किया गया। तीन सप्ताह बाद 27 मई को कॉऑर्डिनेशन कमेटी ने बिना कारण बताते हुए हड़ताल वापस लेने की घोषणा कर दी।

जॉर्ज के समर्थन में उतरीं सुषमा- आपातकाल के दौरान लंबे समय तक भूमिगत रहे जॉर्ज फर्नांडिस, बड़ौदा डायनामाइट केस में गिरफ्तार कर लिये गए। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में चल रहे आंदोलन में सक्रिय थीं सुषमा स्वराज। उनके पति स्वराज कौशल बड़ौदा डायनामाइड केस में जॉर्ज के वकील थे।

1976 में गिरफ्तार जॉर्ज को बिहार की मुजफ्फरपुर जेल में रखा गया था। 1977 में जब चुनाव की घोषणा हुई तो जॉर्ज में जेल में रहते चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनकी मदद के लिए मुजफ्फरपुर में प्रचार का जिम्मा थामा सुषमा स्वराज ने। उन्होंने बेड़ियों में जकड़े जॉर्ज की तस्वीर के साथ प्रचार की शुरुआत की और नारा दिया- जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा। इस चुनाव में जॉर्ज भारी मतों से जीते।

अन्य अहम घटनाएंः

1528ः चंदेरी के किले पर बाबर का कब्जा।

1597ः महाराणा प्रताप का निधन।

1780ः देश के पहले समाचार पत्र बंगाल गजट का कोलकाता से प्रकाशन।

1896ः भारत सेवा आश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणबानंद महाराज का जन्म।

1953ः संगीत नाटक अकादमी की स्थापना।

1983ः स्वतंत्र पार्टी के नेता पीलू मोदी का निधन।

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