6 अप्रैल 1975 को सिक्किम के नामग्याल राजवंश के शासक चोग्याल के राजमहल को करीब 5000 भारतीय सैनिकों ने घेर लिया। इस भारतीय मुहिम की अगुवाई कर रहे थे ब्रिगेडियर दीपेंद्र सिंह।
महल के अंदर मौजूद चोग्याल को माजरा समझ में आ चुका था। राजमहल के 243 सुरक्षा गार्डों ने भारतीय सैनिकों के समक्ष कुछ प्रतिरोध तो दिखाया लेकिन महज 30 मिनट के भीतर भारतीय सैनिकों ने सुरक्षागार्ड सहित पूरे राजमहल पर नियंत्रण कर लिया।
इसके साथ ही सिक्किम का आजाद देश का दर्जा खत्म हो चुका था। चोग्याल ने हैम रेडियो के जरिये यह सूचना पूरी दुनिया को दी।
उन्हें महल के अंदर नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद सिक्किम विधानसभा की देखरेख में हुए जनमत संग्रह में 97 फीसदी जनता सिक्किम के भारत में विलय को अपना समर्थन दिया।
भारत की इस पूरी कार्रवाई की अलग-अलग प्रतिक्रिया हुई। चीन हमेशा से इसके विरोध में था, उसने इसकी तुलना चेकोस्लोवेकिया पर रूस के आक्रमण से की तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चीन को तिब्बत पर किये गए उसके आक्रमण की याद दिलाई।
दरअसल, 1947 में भारत की आजादी के बाद सिक्किम 1974 तक स्वतंत्र राष्ट्र रहा। नामग्याल राजवंश ने भारत में सिक्किम के विलय के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
60 के दशक से सिक्किम को लेकर मुश्किलें बढ़नी शुरू हुई। 1967 में चीन ने सिक्किम पर दावा करते हुए वहां अपने सैनिक भेज दिये जबकि सिक्किम अधिकृत तौर पर भारत द्वारा संरक्षित राज था। यहां भारत ने चीन का प्रतिरोध करते हुए चीन के सैनिकों को मात दी। यह ‘चोला की घटना’ के रूप में याद किया जाता है। 1973 में यहां के राजमहल के सामने नागरिकों का प्रतिरोध शुरू हुआ और इसमें राजतंत्र विरोधी दंगों के बाद भारत ने हस्तक्षेप का इरादा कर लिया।
आगे चलकर सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने के लिए संविधान संशोधन विधायक 23 अप्रैल 1975 को लोकसभा में 299-11 के अंतर से पास हुआ। 26 अप्रैल को राज्यसभा में यह पास हुआ और 15 मई 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के साथ सिक्किम का भारत में विलय और सिक्किम से नामग्याल राजवंश का खात्मा हो गया। 16 मई 1975 से सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत का 22वां राज्य बन गया। इस पूरी मुहिम में रॉ की उल्लेखनीय भूमिका रही।