20 नवंबर 1962 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश को संबोधित करते हुए चीन से मिली सैनिक हार को स्वीकार किया। उन्होंने भरे मन से कहा, हम आधुनिक दुनिया की वास्तविकता दूर चले गए थे और एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था।
पंडित नेहरू ने चीन पर अत्यधिक भरोसा और वास्तविकताओं की अनदेखी को स्वीकार किया। कहते हैं कि इस घटनाक्रम के बाद उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया। स्वास्थ्य लाभ के लिए उन्होंने कश्मीर में भी कुछ समय बिताया। मई 1964 में वे दिल्ली में लौटे। 23 मई को अल्प प्रवास के लिए देहरादून गए जहां से 26 मई को वापस दिल्ली के लिए रवाना हुए। यह आखिरी मौका था जब पंडित नेहरू को सार्वजनिक तौर पर देखा गया।
उस रात वे कंधे और पीठ के दर्द से परेशान रहे। 27 मई की सुबह जब वे बाथरूम से लौटे तो ज्यादा परेशानी अनुभव करने पर डॉक्टरों को बुलाया गया। इसी दौरान वे अचानक बेहोश हुए तो डॉक्टरों की काफी कोशिशों के बावजूद उनकी तंद्रा नहीं टूटी। बेहोशी की हालत में उनका निधन हो गया।
दोपहर दो बजे तत्कालीन स्टील मंत्री कोयम्बटूर सुब्रह्मणियम राज्यसभा में पहुंचे और बुझे मन से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन की आधिकारिक घोषणा करते हुए कहा- रौशनी हमेशा के लिए बुझ गई।