इतिहास के पन्नों मेंः 14 नवंबर – कृष्ण भक्ति में जिन्होंने जीवन समर्पित किया

अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने 14 नवंबर 1977 को वृंदावन में अपनी दैहिक यात्रा पूरी की। 1922 में कलकत्ता में उनका जन्म हुआ और उनका शुरुआती नाम अभयचरण डे था।

सनातन धर्म के प्रसिद्ध गौड़ीय वैष्णव गुरु एवं धर्म प्रचारक स्वामी प्रभुपाद को कृष्ण भक्ति व इस आध्यात्मिक यात्रा को देश-विदेश के करोड़ों लोगों तक पहुंचाने का श्रेय जाता है। ठाकुर सरस्वती के शिष्य स्वामी प्रभुपाद अंग्रेजी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार का अद्वितीय कार्य किया। उनके कई मशहूर कथन हैं जो विभिन्न संदर्भों में उल्लेखित किये जाते हैं- सभी ज्ञान की शुरुआत विनम्रता से होती है।

1959 में उन्होंने संन्यास ग्रहण कर वृंदावन में श्रीमद्भागवतपुराण का अंग्रेजी में अनुवाद किया। 70 वर्ष की आयु में बिना किसी सहायता के अमेरिका के लिए निकले और 1966 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की। साथ ही 1968 में अमेरिका के वर्जीनिया की पहाड़ियों में नव वृंदावन की स्थापना की। 1972 में टेक्सस के डेलस में गुरुकुल की स्थापना कर प्राथमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली की शुरुआत की।

उन्होंने इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्ण कॉन्शसनेस) नाम की संस्था की स्थापना की और कई वैष्णव धार्मिक ग्रंथों का संपादन व प्रकाशन किया। 1966 में स्वामी प्रभुपाद ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में इस्कॉन की शुरुआत की थी। आज इस संस्था के दुनिया भर में 850 से ज्यादा मंदिर व 150 से ज्यादा स्कूल हैं जो कृष्ण की भक्ति पर आधारित हैं।

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