लाला हरदयाल, भारत की आजादी के ऐसे अग्रणी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीयों के बीच आजादी की अलख जगाई। विदेशों में रहे रहे भारतीयों को स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान के लिए प्रोत्साहित किया। इसके लिए उन्होंने `गदर पार्टी’ की स्थापना की।
14 अक्टूबर 1884 में दिल्ली के गुरुद्वारा शीशगंज के पीछे चीराखाना मोहल्ले में पैदा हुए लाला हरदयाल का विद्यार्थी जीवन उपलब्धियों से भरा रहा। उनकी आरंभिक शिक्षा कैम्ब्रिज मिशन स्कूल में हुई और दिल्ली के सेंट स्टीफंस से संस्कृत में स्नातक व लाहौर के पंजाब विवि से संस्कृत में ही एमए किया। इस परीक्षा में उत्कृष्ट अंकों के कारण सरकार ने उन्हें 200 पाउंड की छात्रवृत्ति दी जिसके सहारे लंदन गए और ऑक्सफोर्ड विवि में दाखिला लिया। वहां उन्होंने दो छात्रवृत्तियां हासिल की।
इसी दौरान आजादी के आंदोलन ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि आईसीएस बनने का सपना और ऑक्सफोर्ड विवि, दोनों को छोड़ लंदन में देशभक्त समाज की स्थापना कर असहयोग आंदोलन का प्रचार शुरू कर दिया। खास बात यह है कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से कई वर्ष पहले लाला हरदयाल इस विचार को जमीन पर उतार चुके थे। विदेश में रहते स्वतंत्रता आंदोलन की चेतना फैलाने की व्यापक मुहिम शुरू कर दी।
काकोरी कांड का फैसला आने के बाद 1927 लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। 1938 में उन्हें एकबार फिर भारत लाने का प्रयास किया गया और सरकार ने इसकी अनुमति भी दी लेकिन भारत लौटते रास्ते में ही 4 मार्च 1939 को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।