स्वतंत्र भारत का पहला लोकसभा चुनाव 1951 में हुआ। उस भारत में जहां सिर्फ एक वर्ष पुराना गणतंत्र था और 35 करोड़ की आबादी में 85 प्रतिशत लोग अशिक्षित थे लेकिन इन्हीं लोगों ने दुनिया के समक्ष एक स्वर्णिम उदाहरण पेश किया।
25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक चली चार माह की चुनावी प्रक्रिया में हिमाचल प्रदेश के चिनी तहसील में पहला वोट पड़ते ही इस नये युग की शुरुआत हुई। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन की निगरानी में लोकसभा की 497 और राज्य विधानसभाओं की 3283 सीटों के लिए 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाताओं का निबंधन हुआ। चुनाव तैयारियों के दौरान 2 करोड़ से ज्यादा लोहे के बैलेट बॉक्स बनवाए गए और 62 करोड़ बैलेट पेपर छापे गए। मतदाओं की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष निर्धारित की गई।
इस चुनाव में 45 फीसदी मतदान हुआ और कांग्रेस पार्टी ने 364 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल की। जवाहरलाल नेहरू के अलावा गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर शास्त्री, इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले ऐसे उम्मीदवार थे जो आगे चलकर प्रधानमंत्री बने। 16 सीटों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दूसरे स्थान पर रही जबकि 12 सीटों के साथ सोशलिस्ट पार्टी तीसरे नंबर पर रही। जबकि पीडीएफ को सात, हिंदू महासभा को चार, भारतीय जनसंघ को तीन, अखिल भारतीय रामराज्य परिषद् को तीन और झारखंड पार्टी को तीन सीटें मिलीं। इन पार्टियों के अलावा गणतंत्र परिषद्, शिरोमणि अकाली दल, तमिलनाडु टॉयलर्स पार्टी और कॉमनवेल पार्टी के सदस्य भी चुनाव में जीते।