वैश्विक समस्याओं के समाधान में सक्षम है भारत की क्रांतदर्शिता – प्रो. बल्देवभाई शर्मा

चित्र विवरण : समारोह में वक्तव्य रखते हुए श्री बल्देवभाई शर्मा। अन्य मंचस्थ हैं, बांये से सर्वश्री डॉ. तारा दूगड़, बंशीधर शर्मा, समिक भट्टाचार्य, सज्जन कुमार तुल्स्यान, महावीर प्रसाद रावत एवं अरुण प्रकाश मल्लावत।

कोलकाता : “भारत क्रांतदर्शी ऋषियों का देश रहा है। हिन्दू समाज इसी क्रांतदर्शिता का उतराधिकारी है, किन्तु वर्तमान में हिन्दू समाज बड़ी आसानी से षड़यंत्रों और कुचक्रों का शिकार बनकर भ्रमित हो जाति, पंथ और समुदाय में बँट जाता है। ऐसे कुचक्रों एवं षड़यंत्रों से बचने के लिए हिन्दू समाज का सचेतन होना और सदैव सचेतन रहना आवश्यक है। अगर हिन्दू समाज क्रांतदर्शी रहा तो भारत न केवल संगठित एवं सश्क्त होगा बल्कि वह दुनिया में द्वन्द तथा संघर्ष के बीच समन्वय का मार्ग प्रशस्त कर सकेगा और विश्वगुरु के रूप में अपनी खोई प्रतिष्ठा निश्चित ही पुन: प्राप्त कर लेगा।’ ये उद्गार कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति व प्रखर चिंतक प्रो. बल्देवभाई शर्मा ने ओसवाल भवन सभागार में श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आयोजित नवम् कर्मयोगी जुगल किशोर जैथलिया स्मृति व्याख्यानमाला के अवसर पर “सशक्त एवं संगठित भारत का आधार–सचेतन हिन्दू समाज’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये।

समारोह की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध विचारक एवं सांसद समिक भट्टाचार्य ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में जुगल जी के साथ अनेक प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि समृद्ध भारत के निर्माण के लिए प्रांतीयता से ऊपर उठकर काम करने वाले राष्ट्रनायकों की आवश्यकता है। वर्तमान विकट परिस्थितियों में हिन्दू समाज को संगठित होकर अन्याय एवं अत्याचार के प्रतिकार में अपना स्वर उठाना चाहिए।

समारोह के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आयकर सलाहकार सज्जन कुमार तुल्स्यान ने जैथलिया जी के सामाजिक-साहित्यिक-राजनीतिक अवदानों का स्मरण करते हुए उन्हें असाधारण व्यक्तित्व का धनी बताया। साथ ही भारत के गौरवशाली इतिहास का स्मरण कराते हुए स्वतंत्रता के पश्चात भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं घोषित करना ही तत्कालीन राजनीतिज्ञों की सबसे बड़ी भूल की तरफ संकेत किया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि प्रखर चिंतक समर्पित राष्ट्रभक्त जैथलियाजी का गांव से महानगर तक, वक्तव्य से कर्तव्य तक, भावुकता से कर्मठता तक फैले कर्मयोगी जीवन ने राजस्थान से यहां आकर न केवल उन्होंने अपनी पहचान बनायी अपितु कार्यकर्ताओं की एक लम्बी श्रृंखला का सृजन किया।

समारोह का प्रारंभ लोकप्रिय गायक सत्यनारायण तिवाड़ी के उद्बोधन गीत से हुआ। अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत महावीर प्रसाद रावत, नन्दकुमार लढ़ा, योगेशराज उपाध्याय, डॉ. कमल कुमार एवं श्रीमती अलका काकड़ा ने किये। पुस्तकालय के मंत्री बंशीधर शर्मा ने स्वागत भाषण दिया तथा कोषाध्यक्ष अरुण प्रकाश मल्लावत ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

समारोह में भंवरलाल मूंधड़ा, राकेश कुमार पाण्डेय, अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी, मीनादेवी पुरोहित, सुशील राय, स्नेहलता बैद, रामानन्द रस्तोगी, नन्दलाल सिंघानिया, सीताराम तिवाड़ी, रामगोपाल सूंघा, प्रभुदयाल पारीक, ब्राहृानंद बंग, किसन झंवर, राजाराम बियानी, रामपुकार सिंह, चन्द्रकमार जैन, विद्यासागर मंत्री, अजय चौबे, गोविन्द जैथलिया, सुनील हर्ष, संजय मंडल, राजेश अग्रवाल, गंगासागर प्रजापति, महेन्द्र दुगड़, राजकुमार भाला, रमाकांत सिन्हा, श्रीराम सोनी, जीवन सिंह, ओमप्रकाश झा एवं तेजबहादुर सिंह प्रभृति विभिन्न क्षेत्रों से अनेक गण्यमान्य लोगों से सभागार खचाखच भरा था।

कार्यक्रम को सफल बनाने में रामचन्द्र अग्रवाल, मनोज काकड़ा, सत्यप्रकाश राय, श्रीमोहन तिवारी एवं अरुण कुमार प्रभृति सक्रिय थे।

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