देश-दुनिया के इतिहास में 21 जनवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का भारत के क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से गहरा रिश्ता है। 25 मई, 1886 को जन्मे इस क्रांतिकारी ने 21 जनवरी, 1945 को आखिरी सांस ली थी। दिल्ली में 23 दिसंबर 1912 को रासबिहारी बोस और बंगाल के युवा क्रांतिकारी बसंत कुमार विश्वास ने गवर्नर जनरल लार्ड चार्ल्स हॉर्डिंग की सवारी पर चांदनी चौक पर बम फेंका था। इससे जोरदार विस्फोट हुआ और इलाके में भगदड़ मच गई। इस दौरान लोगों को लगा कि हॉर्डिंग की मौत हो गई। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बम विस्फोट में हार्डिंग घायल हुए पर उनका हाथी मारा गया। इसके तुरंत बाद वो देहरादून लौट आए और सुबह ऑफिस जाकर पहले की तरह काम करने लगे। बोस उस समय फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर देहरादून में क्लर्क की नौकरी करते थे।
हॉर्डिंग की जान को खतरा देख अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी। गिरफ्तारी का खतरा देख रासबिहारी बोस जापान चले गए। इस दौरान बोस ने जापान में 17 ठिकाने बदले। उन्हें जापान के एक ताकतवर नेता ने अपने घर में शरण दी। 21 जनवरी 1945 को उनका निधन हो गया।
अगर आजाद हिंद फौज की बात की जाए तो सबसे पहले दिमाग में सुभाष चंद्र बोस का ख्याल आता है। लेकिन, इसमें भी रास बिहारी की बड़ी भूमिका थी। 1943 में सुभाष चंद्र बोस भारत छोड़कर जर्मनी पहुंच गए। रास बिहारी ने सुभाष चंद्र को बैंकॉक लीग की दूसरी कॉन्फ्रेंस में बुलाया। 20 जून को सुभाष चंद्र टोक्यो पहुंचे। पांच जुलाई को नेताजी का जोरदार स्वागत हुआ। उस समय रास बिहारी इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के अध्यक्ष थे। उन्होंने लीग और इंडियन नेशनल आर्मी की कमान नेताजी को सौंप दी। इसके बाद रास बिहारी सलाहकार की भूमिका में रहे। जापान सरकार ने उन्हें अपने दूसरे बड़े अवॉर्ड ऑर्डर ऑफ दी राइजिंग सन से सम्मानित किया था।