इतिहास के पन्नों में 01 जुलाईः डाकिया डाक लाया, खुशी का पयाम कहीं, कहीं दर्दनाक लाया, कहीं…

देश-दुनिया के इतिहास में 01 जुलाई को कई कारणों से याद किया जाता है। दुनिया में ऐसा बहुत कुछ घटा जिससे यह तारीख इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो गई। भारत में 01 जुलाई को राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस और राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाए जाते हैं। राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस पर पत्रों का जमाना याद आ जाता है। चिट्ठियों का भी क्या जमाना हुआ करता था। कागज के टुकड़े पर लोग लम्हे-लम्हे के एहसास समेट देते थे। एक मुकम्मल यादों का पिटारा हुआ करती थीं चिट्ठियां। मोबाइल और इंटरनेट के युग में भले ही चिट्ठियों का वजूद कम हो गया है, लेकिन डाकघरों की व्यस्तताएं और बढ़ गई हैं। देश में 1774 में कोलकाता में प्रथम डाकघर खुला था।

भारत में 1852 में पहली बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरुआत हुई थी। डाक दिवस पर बेहतर काम करने वाले कर्मचारियों को पुरस्कृत भी किया जाता है। डाकिया डाक लाया, खुशी का पयाम लाया…। यह बोल कुछ सालों पहले तक सुनने को मिला करते थे। तब संचार का माध्यम केवल चिट्ठी होती थी। डाकिया की साइकिल की घंटी बजने का सबको इंतजार रहता था। समय बदला, इंटरनेट का दौर आया। डाकघर ने डिजिटल युग में कदम रखा। देखते-देखते सब कुछ बदल गया, लेकिन नहीं बदली तो डाकियों की साइकिल। आज भी कुछ ऐसे डाकिया हैं जो पुराने समय की तरह साइकिल से घर-घर चिट्ठी पहुंचा रहे हैं। इस अवसर पर फिल्म पलकों की छांव (04 नवंबर, 1977) का गीत- डाकिया डाक लाया/ डाकिया डाक लाया/ खुशी का पयाम कहीं/ कहीं दर्दनाक लाया…याद आ जाता है। पूरा गीत सुनकर आंखों में वो दौर तैर जाता है।

इसके अलावा राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य है उनके अमूल्य योगदान को सम्मान दिया जाए। दरअसल 01 जुलाई को देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय की जयंती और पुण्य तिथि होती है। यह दिन उन्हीं की याद में मनाया जाता है। डॅाक्टर समाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोरोना महामारी से बचाव में डॅाक्टर अपनी जान की परवाह किए बगैर देश सेवा में लगे रहे। पहला राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस 1991 में मनाया गया था। तब से इसे हर साल मनाया जाता है।

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