देश-दुनिया के इतिहास में 16 जुलाई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। भारत के समाज सुधार आंदोलनों में इसे ‘सबसे बड़ा दिन’ भी कहा जाता है। 16 जुलाई, 1856 को समाज सुधारकों के भगीरथ प्रयास के बाद देश में ऊंची जाति की विधवाओं को पुनर्विवाह करने की अनुमति मिली थी। इससे पहले हिन्दुओं में ऊंची जाति की विधवाएं दोबारा विवाह नहीं कर सकती थीं।
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से इस कानून को लागू करवाने में समाजसेवी ईश्वरचंद विद्यासागर का बड़ा योगदान था। उन्होंने विधवा विवाह को हिन्दुओं के बीच प्रचलित करने के लिए अपने पुत्र का विवाह एक विधवा से कराया था।
विधवा पुनर्विवाह को कानूनी वैधता प्रदान कराने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने लोकमत तैयार करने के लिए न सिर्फ भावनात्मक पहलुओं को सामने रखा, बल्कि धर्मशास्त्रों में बताई गई मान्यताओं की गूढ़ता को भी अपने उपन्यास ‘विधवा विवाह’ में गंभीरता से समझाया है।