साल 1905 में लॉर्ड कर्जन के बंगाल बंटवारे के आदेश से पूरे बंगाल में जैसे तूफान आ गया। बंगाल के नौजवानों ने इसके खिलाफ इंकलाबी मुहिम शुरू कर दी। अभियान का केंद्र बना एक संगठन- अनुशीलन समिति। कई अंग्रेज अफसरों पर जानलेवा हमले शुरू हो गए। 1908 में डगलस किंग्सफोर्ड पर हमले के बाद अनुशीलन समिति के राष्ट्रवादियों को ब्रिटिश राज के विरुद्ध युद्ध के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
02 जून 1908 को अरविंदो घोष को गिरफ्तार किया गया। मुख्य अभियुक्त अरविंदो घोष सहित 49 लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा चला। मई 1908 से मई 1909 के बीच कोलकाता के अलीपुर सेशन न्यायालय में यह मुकदमा चला। हालांकि इस मुकदमे के फैसले में अरविंदो और उनके 16 सहयोगियों को रिहा कर दिया गया। जबकि बरिन दास और उलास्कर दत्त को फांसी की सजा सुनाई गई जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार अरविंदो घोष को सजा नहीं दिला पाई।
हालांकि जेल में रहने के दौरान अरविंदो घोष का मन पूरी तरह बदल गया। रिहा होने के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास की घोषणा करते हुए आध्यात्मिक यात्रा शुरू की। आगे चलकर पुडुचेरी में अरबिंदो आश्रम बनाया। पूरी दुनिया में उन्हें आध्यात्मिक शख्सियत के रूप में श्री अरबिंदो के नाम से जाना गया।