वे ऐसी आवाज थे जिन्होंने सबसे पहले अनुच्छेद 370 का खुलकर विरोध करते हुए कहा- एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चल सकते। जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में रह कर अपनी विचारधारा से समझौता करने की बजाय सरकार से बाहर आकर नया रास्ता चुना और भारतीय जनसंघ की स्थापना की। इस देशभक्त राजनेता ने कश्मीर को लेकर अपने विचारों के साथ एक राजनैतिक मुहिम शुरू की जो कई दशकों बाद 5 अगस्त 2019 को नरेन्द्र मोदी की सरकार में पूरी हुई जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का सफाया कर दिया गया। लेकिन अपना बलिदान देकर इस राजनेता को अपनी इस मुहिम की कीमत चुकानी पड़ी। 23 जून 1953 को श्रीनगर में रहस्यमयी परिस्थितियों में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया।
जुलाई 1901 में कलकत्ता के एक संभ्रांत बंगाली परिवार में पैदा हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी शुरू से मेधावी थे। इसी कारण महज 33 साल की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने और वहां से कलकत्ता विधानसभा पहुंचे। चार साल बाद कांग्रेस के टिकट पर कलकत्ता विधानसभा पहुंचे। नेहरू की अंतरिम सरकार में डॉ. मुखर्जी इंडस्ट्री और सप्लाई मंत्रालय का जिम्मा संभालते रहे लेकिन जल्द ही उनका नेहरू व कांग्रेस से मोहभंग हो गया। उन्होंने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
डॉ. मुखर्जी कश्मीर में अनुच्छेद 370 का विरोध करते हुए चाहते थे कि कश्मीर भी दूसरे राज्यों की तरह देश के अखंड हिस्से के रूप में ही देखा जाए और वहां भी समान कानून रहे। उन्होंने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की। 1951-52 के देश के पहले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन उम्मीदवार जीते जिसमें एक थे- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी।
इसके बाद डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर को लेकर अपना अभियान तेज कर दिया और बिना परमिट श्रीनगर में प्रवेश करते हुए 11 मई 1953 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय राज्य में शेख अब्दुल्ला की सरकार थी। दो सहयोगियों के साथ गिरफ्तार हुए डॉ. मुखर्जी को पहले श्रीनगर सेट्रल जेल भेजा गया और कुछ समय बाद शहर के बाहर कॉटेज में ट्रांसफर कर दिया गया। यहां एक महीने से ज्यादा कैद में रखे गए डॉ. मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ती गई। 22 जून को उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई और जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो पता चला कि उन्हें हार्ट अटैक था। हालांकि दूसरे ही दिन राज्य सरकार की तरफ से घोषणा की गई कि 23 जून तड़के करीब 3.40 बजे दिल का दौरा पड़ने से डॉ. मुखर्जी का निधन हो गया।