कोलकाता : कोरोना महामारी के धीरे-धीरे अंत के साथ उल्लसित बसंत का स्वागत करने के लिए भारतीय भाषा परिषद में कविता बसंतोत्सव का आयोजन हुआ। परिषद की अध्यक्ष ने अपने समापन वक्तव्य में कहा कि हम बसंत और हर तरह की सृजनात्मकता का परिषद प्रांगण में स्वागत करते हैं। परिषद के पुस्तकालय और बुक कैफे में पाठक आएं और सेवाओं का लाभ उठाएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिषद के निदेशक डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि बसंत नवजीवन के फिर से शुरू होने का संकेत है। कविता और समाज के बीच खाई चौड़ी हुई है, फिर भी कविताएं लिखी जा रही हैं क्योंकि कविता मनुष्य के भावजगत का प्रसार करती है। कवि संसार की सांस्कृतिक आंखें हैं इसलिए उनकी दृष्टि संकीर्णता से ऊपर उठने की प्रेरणा देती है। कविता के शब्द भय, छद्म और शोर के पार ले जाते हैं। अतिथियों का स्वागत करते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि बसंत पेड़-पौधों में भेदभाव नहीं करता, वह हर जगह छाता है। मनुष्य का हृदय भी बसंत की तरह विशाल होना चाहिए।
कविता बसंतोत्सव में कविता पाठ करने वाले वरिष्ठ और युवा कवियों में थे- सेराज खान बातिश, आशुतोष, अभिज्ञात, जितेंद्र जितांशु, रावेल पुष्प, गीता दुबे, रचना सरन, यशवंत सिंह, जीवन सिंह, कलावती कुमारी, मानव जायसवाल, ओम प्रकाश प्रसाद, रोहित प्रसाद पथिक, मधु सिंह, इबरार खान, सीमा प्रजापति, राजेश सिंह, तृषानिता बनिक, रेशमी सेन शर्मा, मुकुंद शर्मा, सपना कुमारी, शिवप्रकाश दास, नगेंद्र पंडित, मनीषा गुप्ता, नीतू सिंह भदौरिया।
इस अवसर पर उदयराज सिंह, अवधेश प्रसाद, महेश जायसवाल सहित बड़ी संख्या में शहर के साहित्य और संस्कृति प्रेमी उपस्थित थे। प्रो. संजय जायसवाल ने कविता सत्र का संचालन किया और परिषद के मंत्री डॉ. केयूर मजमुदार ने धन्यवाद दिया।