देश-दुनिया के इतिहास में 31 मार्च की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का महत्व तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के लिए सबसे खास है। 1959 में 31 मार्च को ही दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भारत पहुंचे थे और तब से यहीं होकर रह गए। दरअसल, मार्च 1959 में खबर फैली कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाकर बीजिंग ले जाने वाला है। इसके बाद तिब्बत की राजधानी ल्हासा में 10 मार्च, 1959 से चीन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया।
इस दौरान लगभग 30,000 लोग चीन की सेना को रोकने के लिए मानव दीवार बनाकर दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए। चीन की सेना को लोगों को हटाने के लिए तोप और मशीन गन तक लगानी पड़ी। लोगों को बुरी तरह मारा-पीटा गया। दलाई लामा के बॉडीगार्ड्स को मार दिया गया।
कई दिन चले संघर्ष के बाद जब चीन की सेना महल में दाखिल हुई, तब तक दलाई लामा वहां से भाग चुके थे। 17 मार्च को 20 शिष्यों के साथ ल्हासा छोड़ने के वो भारत पहुंचे। भारत ने उन्हें राजनीतिक संरक्षण दिया। तब से आज तक वो भारत में ही हैं।