देश-दुनिया के इतिहास में 25 मई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। दक्षिण भारत की राजनीति में यह तारीख भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए खास है। 2008 में कर्नाटक का विधानसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। ऐतिहासिक इसलिए कि भाजपा ने 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में 110 सीटें जीतकर सरकार बनाई। कर्नाटक को इसीलिए भाजपा के लिए दक्षिण भारत का गेट-वे कहा जाता है।
कर्नाटक में 2008 से पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 30 प्रतिशत से 36 प्रतिशत के बीच रहा। जबकि इसी अवधि में प्रदेश में कांग्रेस का वोट शेयर 35 से 38 प्रतिशत के बीच रहा है। जनता दल (सेक्युलर) का वोट शेयर 18 से 20 प्रतिशत के बीच रहा।
कर्नाटक में भाजपा का एक बड़ी पार्टी के रूप में उभार 1990 के दशक से शुरू होता है। इस उभार में कई कारकों को अहम माना जाता है। पहला यह कि कर्नाटक के प्रभुत्वशाली समुदाय लिंगायत-वीरशैव का समर्थन भाजपा को मिला। कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिले में भाजपा का शानदार जनाधार है। दक्षिण कन्नड़ की आठ सीटों और उडुपी की पांच सीटों पर भाजपा का वोट शेयर 1989 से ही लगातार बढ़ रहा है।
2008 में तो भाजपा को इन दो जिलों की 13 में से 10 सीटों पर जीत मिली थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक की कुल 28 सीटों में से 17 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि 2009 की तुलना में उसे दो सीटें कम मिली पर 2019 ने इसकी भरपाई कर दी। 2019 के आम चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में 25 सीटों पर जीत मिली। मौजूदा आम चुनाव में भी भाजपा के शानदार प्रदर्शन की उम्मीद है।