समुद्री यात्राओं के इतिहास में 30 मई का अहम स्थान है। 1498 को क्रिस्टोफर कोलंबस इसी दिन अमेरिका की अपनी तीसरी यात्रा के लिए स्पेन के सैनलुकर से छह जहाजों के साथ रवाना हुआ था। कोलंबस का जन्म 1451 में जिनोआ में हुआ था। उसके पिता जुलाहा थे। बचपन में कोलंबस अपने पिता के काम में मदद करता था। बाद में उसे समुद्री यात्राओं का चस्का लग गया और इसी को उसने अपना रोजगार बना लिया। कोलंबस के वक्त में यूरोप के व्यापारी भारत समेत एशियाई देशों के साथ व्यापार किया करते थे। वह जमीन के रास्ते आकर अपना माल बेचते थे। इसी दौर में कोलंबस के मन में समुद्र के रास्ते भारत जाने का विचार आया।
ये किसी को पता नहीं था कि वहां से भारत कितनी दूर है और किस दिशा में सफर करने पर भारत पहुंचा जा सकेगा। कोलंबस को अपने ज्ञान पर भरोसा था। उसे यकीन था कि समुद्र में पश्चिम के रास्ते निकला जाए तो भारत पहुंचा जा सकता है। 9 अक्टूबर 1492 को कोलंबस को आसमान में पक्षी दिखाई देने लगे। उसने जहाजों को उसी दिशा में मोड़ने का आदेश दिया जिधर पक्षी जा रहे थे।
12 अक्टूबर 1492 को कोलंबस के जहाजों ने धरती को छुआ। कोलंबस को लगा कि वो भारत पहुंच चुका है। लेकिन दरअसल वह बहामास का आइलैंड सैन सल्वाडोर था। कोलंबस वहां 5 महीने रुका। उसने इस दौरान कई कैरिबियाई द्वीपों की खोज की, जिसमें जुआना (क्यूबा) और हिस्पानिओला (सैंट डोमिनगो) शामिल थे। कोलंबस ने वहां से काफी दौलत इकट्ठा की। इसके बाद वह अपने 40 साथियों को वहीं छोड़कर स्पेन लौट गया। कोलंबस ने तीन बार अमेरिकी द्वीपों की यात्रा की।