बलात्कारी के लिए फांसी की सजा की मांग करने वाला मोनोजित मिश्रा खुद बना बलात्कारी, वायरल वीडियो ने…

कोलकाता : पिछले वर्ष 16 अगस्त को, कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की दर्दनाक घटना के कुछ ही दिन बाद, युवा वकील मोनोजित मिश्रा ने फेसबुक पर एक वीडियो साझा किया था। इस वीडियो में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए एक विरोध मार्च का नेतृत्व कर रही थीं। मोनोजित ने इस पोस्ट के साथ लिखा था :

“बलात्कारी को फांसी दो, हमें न्याय चाहिए, दिखावा नहीं। हमें तुरंत न्याय चाहिए, दोषी को फांसी दो।”

लेकिन एक साल के अंदर ही, वही नारे अब खुद मोनोजित मिश्रा के खिलाफ गूंज रहे हैं।

मोनोजित, जो कभी साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज में तृणमूल कांग्रेस की छात्र इकाई का नेतृत्व करते थे और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से नजदीकी के दावे करते थे, अब उसी कॉलेज के परिसर में दुष्कर्म के एक जघन्य मामले में मुख्य आरोपित हैं। यह घटना सामने आने के बाद छात्रों, समाजसेवियों और विपक्षी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है।

कॉलेज के पूर्व छात्र मोनोजित मिश्रा वहां अनुबंधित कर्मचारी के रूप में काम कर रहे थे। छात्रों के अनुसार, वह अपने राजनीतिक रसूख का हवाला देते हुए कॉलेज में भय का माहौल बनाए रखते थे, यहाँ तक कि शिक्षक भी उनसे डरते थे।

जिस वीडियो को उन्होंने अगस्त 2024 में साझा किया था, वह ममता बनर्जी के नेतृत्व में निकाले गए उस विरोध मार्च का हिस्सा था, जिसमें आर. जी. कर पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग की गई थी। उस मामले में बाद में सीबीआई जांच हुई और जनवरी 2024 में आरोपित संजय रॉय को कोलकाता की अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई।

अब, एक और बलात्कार की घटना ने न सिर्फ राज्य की कानून-व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि तृणमूल सरकार की जवाबदेही पर भी सवाल उठा दिए हैं। जहां सरकार यह कह रही है कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की, वहीं विपक्ष का आरोप है कि सत्ता संरक्षण के चलते ही मोनोजित जैसे लोग बेखौफ हो गए थे।

मोनोजित मिश्रा को अब बर्खास्त कर दिया गया है, जबकि उनके दो सहयोगी — प्रमित मुखोपाध्याय और जाइब अहमद — को कॉलेज से निष्कासित किया गया है।

मोनोजित के खिलाफ पहले भी कई आपराधिक शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं और वे कई मामलों में ज़मानत पर थे।

इन गंभीर आरोपों के बावजूद मोनोजित लंबे समय तक कॉलेज की राजनीति में सक्रिय रहे। आलोचकों का कहना है कि यह मामला बताता है कि किस तरह राजनीतिक संरक्षण अपराधियों को बचाता है और संस्थानों में भय का माहौल बनाता है।

जांच अब जारी है और यह मामला एक बार फिर से कैंपस सुरक्षा, राजनीतिक जवाबदेही और संस्थागत सुधार की ज़रूरत पर बहस को केंद्र में ला चुका है।

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