बेगूसराय : माँ भगवती दुर्गा की भक्ति कर शक्ति पाने का महाव्रत शारदीय नवरात्र की तैयारी शुरू हो गई है। बेगूसराय के 350 से अधिक मंदिरों में इस वर्ष भी माँ दुर्गा विराजेगी। दुर्गा पूजा को लेकर मंदिरों में प्रतिमा निर्माण शुरू हो गया है।
दुर्गा पूजा को लेकर मूर्तिकार जहां तल्लीनतापूर्वक प्रतिमा निर्माण में जुटे हुए हैं, वहीं तमाम जगहों पर आकर्षक पंडाल बनाए जाने की तैयारी की जा रही है। कहीं पर दिल्ली का संसद भवन दिखेगा तो कहीं दिखेगा गेटवे ऑफ इंडिया, इंडिया गेट और मदुराक्षी मंदिर। प्रशासन ने भी शांतिपूर्वक दुर्गा पूजा मनाये जाने को लेकर तैयारी शुरू कर दी है।
सबसे सुखद संयोग है कि इस साल माँ दुर्गा का आगमन और प्रस्थान दोनों हाथी (गज) पर होगा, जिसका फलाफल अत्यंत शुभ है। हाथी पर आगमन के फलाफल में जल वृद्धि और बाढ़ की संभावना है तो प्रस्थान में वर्षा अधिक होगी। शारदीय नवरात्र की शुरुआत 26 सितम्बर को आश्विन माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में कलश स्थापन के साथ माँ भगवती की प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा से होगी।
ज्योतिष अनुसंधान केंद्र गढ़पुरा के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि इस वर्ष शुभ फलाफल लेकर माँ भगवती दुर्गा का आगमन हो रहा है। प्रथम दिन कलश स्थापन और माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना के साथ शारदीय नवरात्र शुरू होगा। 27 सितम्बर को हस्त नक्षत्र में भगवती के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा, 28 सितम्बर को चित्रा नक्षत्र में माता के तृतीय स्वरूप चन्द्रघंटा की पूजा, 29 सितम्बर को स्वाति नक्षत्र में चौथे स्वरूप कूष्माण्डा की पूजा एवं 30 सितम्बर को विशाखा नक्षत्र में पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की पूजा होगी।
एक अक्टूबर को जेष्ठा नक्षत्र में षष्ठ स्वरूप कात्यायनी की पूजा एवं बिल्व आमंत्रण होगा। 2 अक्टूबर को मूल नक्षत्र में सप्तम स्वरूप कालरात्री की पूजा एवं दिन में पत्रिका प्रवेश तथा रात में निशा पूजा और जागरण होगा। 3 अक्टूबर को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा एवं महाअष्टमी व्रत होगा। 4 अक्टूबर को उत्तराषाढ़ नक्षत्र में महानवमी व्रत के दिन नवम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा, हवन, बलिदान एवं महाअष्टमी व्रत का पारण होगा। इसके बाद 5 अक्टूबर को विजयादशमी होगा, इस दिन कलश विसर्जन के बाद जयंती धारण अवश्य करना चाहिए तथा किसी भी कार्य के लिए अभिजीत मुहूर्त होता है।
नवरात्र में सभी लोगों को यथासंभव संस्कृत में पाठ करना चाहिये, संस्कृत देववाणी है और संस्कृत में पाठ से ध्वनि प्रदूषण कम होकर पर्यावरण संरक्षित होने के साथ-साथ सकारात्मक गुण का प्रवेश और शरीर का प्राणायाम होता है। उन्होंने बताया कि जो भी व्यक्ति दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ करने में असमर्थ हैं, उन्हें कम से कम सप्तश्लोकी पाठ, कील, कवच, अर्गला एवं सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ जरूर करना चाहिए। फिलहाल शारदीय नवरात्र शुरू होने में अभी भले ही 20 दिन शेष है, लेकिन वातावरण दुर्गापूजामय हो गया है, मंदिरों में जहां प्रतिमाएं बन रही हैं वहीं बाजार भी सजने लगे हैं।