मुर्शिदाबाद हिंसा : पिता-पुत्र की हत्या मामले में 4 की गिरफ्तारी से राज्य सरकार का ‘बाहरी तत्व’ का दावा फेल

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान एक ही परिवार के दो लोगों की हत्या के मामले में पुलिस ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया है, उनकी पहचान ने पश्चिम बंगाल सरकार के ‘बाहरी तत्व’ वाले दावे को खारिज कर दिया है।

हत्या के इस मामले में गिरफ्तार किए गए चारों आरोपित न केवल मुर्शिदाबाद जिले के निवासी हैं, बल्कि वे उस गांव में नियमित रूप से आया-जाया करते थे, जहां 12 अप्रैल को हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास की हत्या हुई थी।

स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस सूत्रों ने पुष्टि की है कि गिरफ्तार किए गए तीन आरोपित आसपास के गांवों के रहने वाले हैं। पहले गिरफ्तार किए गए दो आरोपित कालू नदाब और दिलदार नदाब आपस में चचेरे भाई हैं और मृतक परिवार के गांव से सटे गांव के निवासी हैं। दोनों अक्सर दास परिवार के गांव आते-जाते रहते थे। पुलिस ने कालू नदाब को बीरभूम जिले के मुरारई से और दिलदार नदाब को मुर्शिदाबाद के सुती इलाके से गिरफ्तार किया है।

इसके बाद एक स्थानीय इलेक्ट्रीशियन इन्ज़माम हक़ को भी गिरफ्तार किया गया, जो घरेलू मरम्मत के सिलसिले में दास परिवार के गांव में आता-जाता था। इसी मामले में चौथा आरोपित जियाउल हक़ उर्फ चाचा को शनिवार देर रात उत्तर दिनाजपुर जिले के चोपड़ा से गिरफ्तार किया गया। जियाउल को भी स्थानीय लोग अच्छी तरह पहचानते हैं और उसका गांव में नियमित आना-जाना था।

ग्रामीणों का शुरू से यह कहना रहा है कि हमलों को अंजाम देने वाले लोग न केवल आसपास के इलाकों से थे, बल्कि वे गांव की भौगोलिक स्थिति और रास्तों से अच्छी तरह वाकिफ थे। इससे यह साफ होता है कि यह हमला बाहरी नहीं, बल्कि अंदरूनी स्तर पर सुनियोजित था।

गौरतलब है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ ने 12 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के संवेदनशील क्षेत्रों में केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती का आदेश दिया था। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार द्वारा सांप्रदायिक तनाव पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदम अपर्याप्त साबित हुए हैं।

खंडपीठ ने अपने आदेश में लिखा, “हालांकि हमने राज्य सरकार के उस रुख को दर्ज किया है कि वे विभिन्न समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है, लेकिन अब तक उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं लगते।” न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि यदि समय रहते केंद्रीय बलों की तैनाती की जाती, तो हालात इतने ‘गंभीर’ और ‘अशांत’ नहीं होते।

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