देश-दुनिया के इतिहास में 02 नवंबर की तारीख तमाम हलचलों की वजह से दर्ज है। इस तारीख का महत्व भारत और मॉरीशस के इतिहास से भी है। दुनिया को मालूम है कि भारत के बाहर भी मॉरीशस में छोटा भारत बसता है। साल 1834 में 02 नवंबर को ही एटलस नाम का जहाज भारतीय मजदूरों को लेकर मॉरीशस पहुंचा था। इसकी स्मृति में हर साल 02 नवंबर को मॉरीशस में अप्रवासी दिवस मनाया जाता है।
मॉरीशस को छोटा भारत क्यों कहते हैं? इसका आसान जवाब है। मॉरीशस आज जो है, उसका बड़ा श्रेय वहां गए भारतीय मजदूरों को जाता है। उन्होंने अपनी मेहनत से इस देश को नई पहचान दी है। एटलस से जो मजदूर मॉरीशस पहुंचे थे, उनमें 80 प्रतिशत बिहार से थे। उन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था यानी समझौते के आधार पर लाए गए मजदूर। इन्हें लाने का उद्देश्य था मॉरीशस को एक कृषि प्रधान देश के रूप में विकसित करना। अंग्रेज 1834 से 1924 के बीच भारत से और भी लोगों को मॉरीशस ले गए। मॉरीशस जाने वालों में सिर्फ मजदूर नहीं थे। ब्रिटिश कब्जे के बाद मॉरीशस में भारतीय हिंदू और मुस्लिम दोनों व्यापारियों का छोटा लेकिन समृद्ध समुदाय भी था। यहां आने वाले अधिकांश व्यापारी गुजराती थे। 19वीं शताब्दी में कई ऐसे घटनाक्रम हुए, जिससे मजदूरों के वंशज जमीन खरीद सके। उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
मॉरीशस की कुल आबादी में करीब 52 प्रतिशत हिंदू हैं। यहां लगता ही नहीं कि आप विदेश में हैं। वहां उत्तर भारत के शहरों जैसा अहसास होता है। वहां हिंदी और भोजपुरी सुनकर भारतीय मिट्टी की महक महसूस हो सकती है। यह देश अफ्रीका में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में से एक है। मॉरीशस पर 1715 में फ्रांस ने कब्जा किया था। तब इसकी अर्थव्यवस्था विकसित हुई, जो चीनी के उत्पादन पर आधारित थी। 1803 से 1815 के दौरान हुए युद्धों में ब्रिटिश इस द्वीप पर कब्जा पाने में कामयाब हुए। भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम की अगुआई में ही मॉरीशस को 1968 में आजादी मिली थी। राष्ट्रमंडल के तहत 1992 में यह गणतंत्र बना। मॉरीशस एक स्थिर लोकतंत्र है, जहां नियमित रूप से स्वतंत्र चुनाव होते हैं।