देश-दुनिया के इतिहास में 05 नवंबर की तारीख कई कारणों से दर्ज है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में यह तारीख स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। दरअसल मंगल पर पहुंचना दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए शुरू से ही बड़ी चुनौती रही है पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने जो किया, वह स्पेस साइंस के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। भारत ने 05 नवंबर 2013 को 1350 किलोग्राम वजन वाले मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान) को लॉन्च किया। यह एक ऐसा मिशन था, जिसने भारत की पहचान पूरी दुनिया में बदल दी। एक साल बाद 24 सितंबर, 2014 को भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता के साथ मंगलयान को मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित किया।
65 करोड़ किलोमीटर का सफर तय करके मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा और इस मिशन पर खर्च इतना कम था कि पूरी दुनिया ने दांतों तले अंगुली दबा ली। दरअसल, हॉलीवुड की फिल्म ग्रैविटी बनाने में जितना खर्च हुआ, उससे काफी कम में भारत मंगल ग्रह पर पहुंच गया। सिर्फ 450 करोड़ रुपये खर्च हुए थे इस पर। यानी प्रत्येक भारतीय पर महज 4 रुपये का बोझ पड़ा। दुनियाभर में अब तक किसी भी इंटर-प्लैनेट मिशन से इसरो का मंगल मिशन कहीं सस्ता है। एक अनुमान के मुताबिक, मंगलयान के सफर की कीमत 11.5 रुपये प्रति किलोमीटर है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के 16वें मंगल मिशन में भेजे गए स्पेस क्राफ्ट मावेन के मंगल की कक्षा में पहुंचने के ठीक 48 घंटे बाद भारत का मंगलयान लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर गया। पहले बताया गया था कि यह मिशन छह महीने का है, यानी मंगलयान को छह महीने तक मंगल ग्रह के चक्कर लगाने थे और वहां की महत्वपूर्ण जानकारियां पृथ्वी पर भेजनी थीं। मंगल की सतह पर मौजूद मिनरल्स का अध्ययन करना था। भविष्य में मंगल ग्रह के लिए मानव मिशन शुरू करने की संभावना भी टटोलनी थी। मीथेन की मौजूदगी की स्टडी भी करनी थी। 2018 में इस यान ने पांच साल पूरे किए। इसके बाद अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म मिशन मंगल में भारत के मंगल अभियान को फिल्माया गया।