देश-दुनिया के इतिहास में 14 नवंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण है। दरअसल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान लॉन्च किया गया था। यह 30 अगस्त, 2009 तक चांद के चक्कर लगाता रहा। इस चंद्रयान में एक डिवाइस लगा था-मून इम्पैक्ट प्रोब । इसने 14 नवंबर, 2008 को चांद की सतह पर उतरकर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत का दबदबा बढ़ाया। ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बना।
इससे पहले सिर्फ अमेरिका, रूस और जापान ही ऐसा करने में कामयाब हो सके थे। इसी डिवाइस ने चांद की सतह पर पानी की खोज की। यह इतनी बड़ी खोज थी कि अमेरिकी स्पेस साइंस ऑर्गेनाइजेशन (नासा) ने भी पहले ही प्रयास में यह खोज करने के लिए भारत की पीठ थपथपाई थी।
चंद्रयान-1 इसरो के मून मिशन का पहला यान था। इसे चंद्रमा तक पहुंचने में पांच दिन और उसका चक्कर लगाने के लिए कक्षा में स्थापित होने में 15 दिन लगे। इस डिवाइस की कल्पना पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी। उनके सुझाव पर ही इसरो के वैज्ञानिकों ने इसे बनाया था। कलाम चाहते थे कि भारतीय वैज्ञानिक चांद के एक हिस्से पर अपना निशान छोड़ें और इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें निराश नहीं किया।