इतिहास के पन्नों में 23 नवंबरः पौधों में भी होती है जान, उन्हें भी दर्द होता है

पौधों में भी जान होती है, इंसानों की तरह उन्हें भी दर्द होता है। पौधों पर भी तापमान व रोशनी का असर होता है। विज्ञान के क्षेत्र में कई अहम खोज करने वाले जगदीश चंद्र बोस का 23 नवम्बर 1937 को 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्हें ‘फादर ऑफ रेडियो साइंस’ भी कहा जाता है। उन्होंने रेडियो तरंगों की खोज की। खास बात यह है कि यह खोज उन्होंने अपने कॉलेज के एक छोटे से कमरे में की। जहां न तो प्रयोगशाला थी और न ही उपकरण। विज्ञान कथा लेखन में भी उनकी खासी दिलचस्पी थी।

जगदीश चंद्र बोस का जन्म पूर्वी बंगाल के ररौली गांव में 30 नवंबर 1858 को हुआ। शुरुआती पढ़ाई गांव से करने के बाद हायर स्टडी के लिए कोलकाता यूनिवर्सिटी पहुंचे और भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की। यहां से वे कैम्ब्रिज विवि गए और 1884 में ग्रेजुएशन करने के बाद भारत वापस लौटे। जहां वे प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिकी के अध्यापक बने।

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इस दौरान एक घटना हुई जिससे इस महान वैज्ञानिक के स्वाभिमानी व्यक्तित्व का पता चलता है। उस दौर में भारतीय प्राध्यपकों को यूरोपीय प्राध्यापकों की तुलना में दो तिहाई वेतन दिया जाता था। जगदीश चंद्र बोस इस भेदभाव और उनपर होने वाली नस्लीय टिप्पणियों से परेशान थे। लिहाजा, उन्होंने भारतीय प्राध्यापकों को भी समान वेतन की मांग करते हुए सालभर तक वेतन लेने से मना कर दिया। इस दौरान आर्थिक तंगी के कारण कलकत्ता का मकान छोड़ कर शहर से दूर जाने का फैसला लिया, पर कम वेतन लेने को राजी नहीं हुए। आखिरकार कॉलेज प्रशासन को उनके सामने झुकना पड़ा और बराबर वेतन देने की बात कही।

उन्होंने पौधों की वृद्धि को मापने के लिए एक उपकरण क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार किया। चंद्रमा पर एक क्रेटर का नाम उनके सम्मान में रखा गया था। उन्होंने बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो भारत का सबसे पुराना प्रमुख शोध संस्थान है।

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