देश-दुनिया के इतिहास में 30 अक्टूबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख दुनिया के इतिहास में एटम बम के ‘बाप’ के खौफ के रूप में भी दर्ज है। दरअसल अमेरिका ने दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर एटम बम गिराकर पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा दी थी। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध शुरू हुआ।
दोनों में होड़ मच गई। तब सोवियत संघ के वैज्ञानिक आंद्रेई सखारोव ने 1960 ऐसा बम तैयार किया, जिसे दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा बम कहा गया। इसे नाम दिया गया जार बम। जार रूस के राजाओं की उपाधि थी और इस बम को बमों के महाराजा की तरह प्रस्तुत किया गया।
यह बम इतना बड़ा था कि इसके लिए खास लड़ाकू जहाज बनाया गया। हथियार और मिसाइलें लड़ाकू जहाजों में रखे जाते हैं, लेकिन जार बम इतना बड़ा था कि उसे विमान से पैराशूट के जरिए लटकाकर रखा गया। 30 अक्टूबर, 1961 को जार बम का परीक्षण किया गया। यह बम अमेरिका के लिटिल बॉय और फैट मैन जैसा था, लेकिन उनसे बहुत बड़ा था और पलभर में बड़े शहर को खाक कर सकता था।
सोवियत लड़ाकू जहाज टुपोलोव-95 ने करीब 10 किलोमीटर की ऊंचाई से पैराशूट से इसे लेकर नोवाया जेमलिया द्वीप पर गिराया। ताकि विस्फोट से पहले गिराने वाला और तस्वीरें ले रहा विमान सुरक्षित दूरी तक पहुंच जाएं। दोनों विमान 50 किलोमीटर दूर पहुंचे थे कि भयंकर विस्फोट हुआ। विस्फोट इतना भयंकर था कि पूरी दुनिया दहल उठी। तब इसे बम का बाप कहा गया।
इस विस्फोट का असर यह हुआ कि दुनिया के तमाम देश खुले में एटमी टेस्ट न करने पर राजी हुए। 1963 में ऐसे एटमी परीक्षणों पर रोक लगा दी गई। इस बम को बनाने वाले सखारोव को भी लगा कि ऐसा बम दुनिया में तबाही मचा सकता है। वह बाद में एटमी हथियारों के खिलाफ शुरू किए गए अभियान के नेता बन गए। बाद में सखारोव को 1975 में शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।