– पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल
कोलकाता : कोलकाता के पार्क सर्कस थाना इलाके में मौजूद बांग्लादेशी उच्चायोग की सुरक्षा में तैनात जिस पुलिसकर्मी ने गत 10 जून को अंधाधुंध फायरिंग कर एक महिला और अपनी जान ले ली थी वह काल्पनिक एनकाउंटर फोबिया से पीड़ित था। करीब एक साल पहले ही उसे यह बीमारी हो गई थी। उसके साथ काम करने वाले कई अन्य पुलिस अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया है कि वह कई बार छापेमारी ड्यूटी में जाने से इनकार कर चुका था क्योंकि वह आशंका जाहिर करता था कि छापेमारी के दौरान मुठभेड़ हो सकती है जिसमें अंततः उसकी जान चली जाएगी। उसके इसी असामान्य बर्ताव की वजह से एक साल से भी कम अंतराल में उसे कम से कम तीन जगह पर अलग-अलग पोस्टिंग दी गई थी।
इतना ही नहीं, कोलकाता पुलिस सूत्रों ने बताया है कि वह कोलकाता पुलिस के तेजतर्रार निशानेबाज जवानों में से एक था। प्रशिक्षण की अवधि के दौरान सटीक निशाना लगाने में उसकी विशेषज्ञता के कारण ही लेपचा की पहली पोस्टिंग कोलकाता पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स में हुई थी जिसमें पोस्टिंग के लिए आमतौर पर पुलिसकर्मियों को वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि काल्पनिक एनकाउंटर फोबिया के चलते ही उसका एसटीएफ से तबादला कर दिया गया था। एक बार एसटीएफ की छापेमारी टीम के साथ जाते समय वह बीच रास्ते में ही अपने सहयोगियों से लड़ पड़ा था और यह कहते हुए गाड़ी से नीचे उतर गया था कि वह किसी भी एनकाउंटर मिशन में नहीं जाना चाहता। उसने इस सीक्वेंस को फेसबुक पर भी लाइव करने की कोशिश की थी लेकिन उसके सहयोग कर्मियों ने उसे रोक दिया था। उसकी दूसरी पोस्टिंग यातायात विभाग में थी जहां उसने कर्तव्य में लापरवाही दिखानी शुरू कर दी थी। इसके बाद इसी साल मई महीने में उसे सशस्त्र पुलिस में तैनात किया गया था। हालांकि उसके बर्ताव की वजह से उसे शुरुआत में उसकी सर्विस सेल्फ लोडिंग राइफल (एसएलआर) आवंटित नहीं की गई थी लेकिन बाद में बांग्लादेश उच्चायोग की सुरक्षा में जाते समय उसे एसएलआर दी गई थी जिससे 10 जून को उसने अंधाधुंध फायरिंग की थी। उसी दिन उसने छुट्टी के बाद लौट कर ड्यूटी भी ज्वाइन की थी। इसी फायरिंग में रीमा सिंह नाम की 28 साल की थैरेपिस्ट की गोली लगने से मौत हो गई थी।