पंजाब : हिल गईं दिग्गजों की कुर्सियां, चल गया झाड़ू

कुसुम चोपड़ा – पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इस बार के नतीजों में जो हुआ है, वह अभी तक के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। ना सिर्फ दिग्गजों की कुर्सियां हिल गईं हैं, बल्कि उनके नीचे जमी ‘मैं’ की औछी सियासत, जीत का ओवर कॉन्फिडेंस और विवादित बयानबाजियों की गंदगी की सफाई के लिए पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी (आप) का झाड़ू भी पकड़ लिया। आम आदमी पार्टी ने ना सिर्फ सूबे में झाड़ू फेरा है, बल्कि ऐसी जीत दर्ज की है, जिसे अब तक की सबसे बड़ी जीत कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

चरनजीत सिंह चन्नी

सबसे पहले बात करते हैं अभी तक पंजाब की सत्ता संभाल रही कांग्रेस की, जिसे इस बार बुरी तरह से मुंह की खानी पड़ी है। कैप्टन-सिद्धू विवाद के बाद जब कैप्टन ने पार्टी छोड़ी तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की जंग छिड़ गई। कभी सुनील जाखड़, कभी सुखजिंदर सिंह रंधावा तो कभी नवजोत सिंह सिद्धू सीएम की कुर्सी पर दावा ठोकते दिखाई दिए। लेकिन कांग्रेस ने चरनजीत सिंह चन्नी को बाकी बचे 111 दिन के लिए यह सोचकर सत्ता सौंप दी कि एक दलित चेहरा सूबे में कांग्रेस की जीत जरूर पक्की कर देगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद अति उत्साहित चन्नी अपनी पारंपरिक सीट चमकौर साहिब के साथ-साथ भदौड़ सीट से भी चुनाव मैदान में कूद पड़े। जब नतीजे सामने आए तो ना सिर्फ उन्हें भदौड़ से हार का मुंह देखना ही पड़ा, बल्कि अपनी पुरानी सीट चमकौर साहिब से भी हाथ धो बैठे। चमकौर साहिब से उनके हमनाम और आप नेता चरनजीत सिंह ने उन्हें हरा दिया।

नवजोत सिंह सिद्धू

बयानवीर और कांग्रेस के दिग्गज नेता नवजोत सिंह सिद्धू अभी तक अपनी पारंपरिक सीट अमृतसर पूर्व से लगातार जीतते आए हैं। इस बार भी उन्हें पक्का विश्वास था कि वह ना केवल अपने धुर विरोधी अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया को धोबी पछाड़ देंगे, बल्कि अपनी सीट भी पहले से ज्यादा वोटों से जीत कर लाएंगे। लेकिन सिद्धू की विवादित बयानबाजी, मुख्यमंत्रियों की खिलाफत और इस्तीफा देने और वापस लेने वाली बचकाना हरकतों को पंजाब की जनता ने इस बार गंभीरता से ले लिया और उन्हें अपनी पुरानी सीट से भी हाथ धोना पड़ा। आम आदमी पार्टी उनके हाथ से यह सीट छीनकर ले गई।

प्रकाश सिंह बादल

शिरोमणि अकाली दल की बात करें तो सियासत के बाबा बोहड़ कहे जाने वाले प्रकाश सिंह बादल हमेशा लंबी विधानसभा हलके से चुनाव लड़ते और जीतते आए हैं। लंबी ना सिर्फ उनका चुनावी हलका है, बल्कि उनका पैतृक घर भी यहीं पर है। पिछले कई दशकों से वह लंबी में रह रहे हैं। यहां के लोग उन्हें परिवार के बुजुर्ग की तरह सम्मान देते हैं। लेकिन इस बार आप का जादू कुछ इस तरह से यहां के लोगों के सिर चढ़कर बोला कि उन्होंने अपने बुजुर्ग की हार ही सुनिश्चित कर डाली और आप नेता गुरमीत सिंह को जिता दिया।

सुखबीर सिंह बादल

वहीं सुखबीर सिंह बादल जलालाबाद से चुनाव लड़ते और जीतते आए हैं। एक समय में उन्होंने आप नेता भगवंत मान को भी यहां से हरा दिया था। लेकिन इस बार वे भी अपनी इस विश्वसनीय सीट को बचा नहीं पाए और आम आदमी पार्टी ने अपनी पिछली हार का बदला लेते हुए उन्हें करारी शिकस्त दी।

बिक्रम सिंह मजीठिया

बात करते हैं बिक्रम सिंह मजीठिया की, जिन्हें चुनाव से ठीक पहले ड्रग्स मामले में अदालत के चक्कर लगाने पड़े। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे मजीठिया को चुनाव तक जेल जाने से राहत तो मिली, लेकिन चुनाव खत्म होते ही उन्हें जेल जाना पड़ा। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने पंजाब की जनता से अपनी बेगुनाही की लाख दुहाइयां दीं, लेकिन कहते हैं ना कि ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है। मजीठिया के मामले में भी यहीं हुआ। मजीठिया ने नवजोत सिंह सिद्धू को ललकारते हुए उनके खिलाफ अमृतसर पूर्वी से चुनाव लड़ने का ऐलान कर डाला। लेकिन यहां के लोगों ने सिद्धू और मजीठिया दोनों को नकारते हुए आम आदमी पार्टी की झोली में जीत डाल दी।

कैप्टन अमरिंदर सिंह

कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह को उम्मीद थी कि कांग्रेस में रहते हुए उनके साथ हुई नाइंसाफी की भरपाई पंजाब की जनता चुनाव में जरूर करेगी। नवजोत सिंह सिद्धू से विवाद के बाद कैप्टन अमिरंदर सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से नई पार्टी बनाई और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर जीत का दावा ठोका, लेकिन हाल यह हुआ कि वह अपनी पारंपरिक सीट पटियाला शहरी से भी हाथ धो बैठे। ‘आप’ ने उन्हें हार का मुंह देखने के लिए मजबूर कर दिया। वैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव प्रचार के दौरान ही दौड़ में काफी पीछे दिखाई दे रहे थे।

इन सब दिग्गजों के अलावा मनप्रीत सिंह बादल (कांग्रेस) राणा केपी सिंह (कांग्रेस), ओपी सोनी (कांग्रेस), राजिंदर कौर भट्ठल (कांग्रेस), कुलजीत सिंह नागरा(कांग्रेस), रजिया सुल्ताना (कांग्रेस), गुलजार सिहं रणिके (शिरोमणि अकाली दल), रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा (शिरोमणि अकाली दल), प्रेम सिंह चंदूमाजरा (शिरोमणि अकाली दल), विजय सांपला (भाजपा), तीक्ष्ण सूद (भाजपा), अरुण नारंग (भाजपा) जैसे बड़े नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा है।

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