प्रदीप ढेडिया – लेखक समर्पण ट्रस्ट के ट्रस्टी एवं आनंद लिमिटेड के निदेशक हैं
30 मार्च, 2025 का दिन भारतीय संस्कृति और सनातन परंपराओं के लिए एक अनुपम संगम लेकर आ रहा है। यह दिन न केवल हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2082 की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि राजस्थान दिवस और गणगौर पूजा के शुभारंभ का भी साक्षी बनेगा। इन तीनों अवसरों का एक साथ आना न सिर्फ संयोग है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की उस अटूट शक्ति का प्रमाण है जो समय के थपेड़ों के बीच भी अपनी पहचान को जीवंत रखती है। खास तौर पर राजस्थान, जो अपनी सभ्यता, संस्कृति और गौरवमयी इतिहास के लिए विश्वविख्यात है, इस दिन अपने वैभव को और भी गहराई से प्रदर्शित करता है।
हिंदू नववर्ष, जिसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है, भारतीय कालगणना की एक प्राचीन परंपरा है। यह संवत राजा विक्रमादित्य के शासन से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अपनी प्रजा के लिए न्याय और समृद्धि का स्वर्णिम युग स्थापित किया था। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होने वाला यह नववर्ष नवीनता, आशा और सृजन का संदेश लेकर आता है। प्रकृति इस समय बसंत के रंगों से सराबोर होती है और चारों ओर एक नई ऊर्जा का संचार होता है। ठीक इसी दिन राजस्थान दिवस मनाया जाता है, जो 30 मार्च 1949 को राजस्थान राज्य के गठन की स्मृति में पालन किया जाता है। यह दिन राजस्थान की उन रियासतों के एकीकरण का प्रतीक है, जिन्होंने अपने गौरवमयी इतिहास और संस्कृति को संजोते हुए एक विशाल राज्य की नींव रखी। और इसी शुभ दिन पर गणगौर का पर्व शुरू होता है, जो नारी शक्ति, प्रेम और समर्पण का उत्सव है। यह संयोग राजस्थान की आत्मा को और भी प्रकाशमान करता है।
राजस्थान का नाम सुनते ही मन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है जहां रेगिस्तान की सुनहरी रेत पर बनी भव्य हवेलियां, किले और महल इतिहास की गाथाएं सुनाते हैं। यह भूमि वीरता, शौर्य और बलिदान की प्रतीक रही है। मरुभूमि की कठिन परिस्थितियों में भी यहां के लोगों ने अपनी संस्कृति को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे विश्व पटल पर एक विशिष्ट पहचान दी। राजस्थान के कण-कण में बसी है वह गाथा जो महाराणा प्रताप, मीरा बाई, पन्ना धाय और रानी पद्मिनी जैसे व्यक्तित्वों से सुसज्जित है। महाराणा प्रताप का अकबर के सामने झुकने से इनकार और हल्दीघाटी का युद्ध आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इसी तरह मीरा की भक्ति और प्रेम की कहानी सनातन धर्म की उस भावना को दर्शाती है जो ईश्वर के प्रति समर्पण को सर्वोपरि मानती है। राजस्थान दिवस इन गौरवमयी गाथाओं को याद करने का अवसर है, जब हम इस भूमि के इतिहास को नमन करते हैं।
राजस्थान की संस्कृति का एक अनूठा पहलू उसकी लोक परंपराएं और कला हैं। यहां के लोक नृत्य जैसे घूमर और कालबेलिया न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि यह जीवन के उत्सव और सामाजिक एकता को भी दर्शाते हैं। घूमर का नृत्य, जो गणगौर के दौरान विशेष रूप से किया जाता है, महिलाओं के बीच एकता और उनकी शक्ति का प्रतीक है। गणगौर का यह पर्व शिव और पार्वती के प्रेम और एकता को समर्पित है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और अविवाहित कन्याएं अपने लिए योग्य वर की कामना करती हैं। मिट्टी से बनी गणगौर की मूर्तियों को सजाया जाता है और पूरे उत्साह के साथ उनकी पूजा की जाती है। यह पर्व सनातन धर्म में नारी के महत्व को रेखांकित करता है, जहां वह केवल गृहणी ही नहीं, बल्कि शक्ति और सृजन की देवी भी मानी जाती है। राजस्थान में यह पर्व 16 दिनों तक चलता है और अंत में विसर्जन के साथ समाप्त होता है, जो जीवन के चक्र और प्रकृति के साथ तादात्म्य को दर्शाता है।
राजस्थान की सभ्यता का एक और महत्वपूर्ण पहलू उसका स्थापत्य है। जयपुर का हवा महल, उदयपुर का सिटी पैलेस, जैसलमेर का सोनार किला और बीकानेर के जूनागढ़ किले जैसे स्थापत्य चमत्कार इस भूमि की समृद्धि और कारीगरी का प्रमाण हैं। ये संरचनाएं केवल पत्थर और ईंटों से निर्मित नहीं हैं, बल्कि इनमें राजस्थान के लोगों की आत्मा बसी है। इन किलों और महलों की दीवारें उन युद्धों, उन त्यागों और उन विजयों की कहानियां कहती हैं, जिन्होंने इस धरती को गौरव प्रदान किया। हिंदू नववर्ष के शुभारंभ पर जब हम इन संरचनाओं को देखते हैं, तो यह महसूस होता है कि यह भूमि समय के साथ बदलती जरूर है, लेकिन अपने मूल्यों और परंपराओं को कभी नहीं भूलती। यह सनातन धर्म का वह सिद्धांत है जो परिवर्तन के साथ स्थिरता का संतुलन सिखाता है।
राजस्थान का गौरव केवल उसके इतिहास और संस्कृति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसके लोगों के जीवन में भी झलकता है। यहां के लोग मेहनती, मेहमाननवाज और अपनी जड़ों से गहरे जुड़े हुए हैं। रेगिस्तान में पानी की एक-एक बूंद की कीमत समझने वाले ये लोग जीवन की हर चुनौती का डटकर मुकाबला करते हैं। उनकी यह भावना गणगौर के पर्व में भी दिखती है, जब वे कठिन परिस्थितियों में भी उत्सव का आयोजन करते हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। राजस्थान दिवस इस भावना का उत्सव है, जो हमें याद दिलाता है कि एकता और संकल्प से बड़ी से बड़ी बाधा को पार किया जा सकता है।
हिंदू नववर्ष का आगमन प्रकृति और मानव जीवन के बीच संनाद का संदेश लेकर आता है। यह समय है जब खेतों में नई फसल की तैयारी शुरू होती है और घरों में मंगलकामनाओं का आदान-प्रदान होता है। राजस्थान में यह समय रंग-बिरंगे परिधानों, स्वादिष्ट व्यंजनों और लोक संगीत से भरा होता है। गणगौर के दौरान बनने वाले घेवर समेत अन्य पारंपरिक मिठाइयां इस उत्सव को और भी खास बनाती हैं। यह सनातन धर्म की वह विशेषता है जो हर पर्व को जीवन के हर पहलू से जोड़ती है- चाहे वह भक्ति हो, प्रेम हो या सामाजिक समरसता।
अंततः 30 मार्च 2025 का दिन राजस्थान के लिए एक त्रिवेणी संगम की तरह है, जहां हिंदू नववर्ष, राजस्थान दिवस और गणगौर का पर्व एक साथ मिलते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि राजस्थान केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत संस्कृति, अटूट परंपराओं और गौरवमयी इतिहास का प्रतीक है। इस दिन को मनाते हुए हम न केवल अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसी विरासत छोड़ते हैं जो समय की कसौटी पर खरी उतरे। राजस्थान का यह गौरव सनातन धर्म की उस शाश्वतता का प्रमाण है जो हर युग में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखती है।