इतिहास के पन्नों में 03 सितंबरः राजाओं के खेल ‘पोलो’ की कहानी है सुहानी

देश-दुनिया के इतिहास में 03 सितंबर की तारीख कई मायने में महत्वपूर्ण है। राजाओं के खेल ‘पोलो’ के लिहाज से इस तारीख का इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। 03 सितंबर, 1875 को दुनिया का पहला पोलो मैच खेला गया था। अर्जेंटाइन ओपन पोलो टूर्नामेंट में खेले गए इस मैच को पहला आधिकारिक पोलो मैच माना जाता है। पोलो दुनिया का सबसे पुराना टीम स्पोर्ट है। इसका इतिहास 2000 साल से भी ज्यादा पुराना है। भारत में पोलो को आधुनिक रूप में लाने का श्रेय मुगलों को जाता है। ब्रिटिश काल में प्रसिद्ध ब्रिटिश कप्तान रॉबर्ट स्टीवर्ट पोलो का अंग्रेजी रूप लेकर आए। ब्रिटिश शासकों ने असम के सिलचर में एक पोलो क्लब की स्थापना की। हालांकि मणिपुर और मंगोल जाति के लोग ब्रिटिशर्स के आने से पहले से ही पोलो खेलते थे। इसी वजह से मणिपुर को पोलो का जन्मस्थान माना जाता है। ‘सागो कांगजेई’ नामक एक पारंपरिक मणिपुरी खेल को आधुनिक पोलो का जन्मदाता माना जाता है।

1892 में भारत में इंडियन पोलो एसोसिएशन की स्थापना हुई। उस समय अलग-अलग रियासतों की अपनी पोलो टीम हुआ करती थी। इनमें जयपुर, भोपाल, अलवर, बीकानेर और हैदराबाद मुख्य थीं। आजादी के बाद भी पोलो भारत में खेला जाता रहा। 1957 में भारतीय पोलो टीम ने फ्रांस में वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब भी अपने नाम किया था। और साल 2013 में माइक्रोसॉफ्ट ने नोकिया को खरीदा था। नोकिया भारत में घर-घर में जाना पहचाना नाम रहा। अपने कीपैड फोन की ब्रॉड रेन्ज की वजह से नोकिया के सामने कोई भी दूसरी कंपनी भारत में टिक नहीं सकी।

नोकिया का इतिहास डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। 1865 में फ्रेडरिक इडेस्टैम ने फिनलैंड में नोकिया कॉर्पोरेशन की शुरुआत बतौर एक पेपर मिल कंपनी से की थी। हालांकि उस वक्त कंपनी को नोकिया नाम नहीं मिला था। कुछ सालों बाद कंपनी ने अपनी दूसरी ब्रांच नोकियानवेरता नदी के पास खोली। माना जाता है कि नदी के नाम की वजह से ही नोकिया को नोकिया नाम मिला। शुरुआत में कंपनी पेपर, रबर और केबल्स का कारोबार करती थी।

1871 में फ्रेडरिक इडेस्टैम ने अपने दोस्त लियो मैकलीन के साथ मिलकर एक शेयर्ड कंपनी बनाई जिसे नोकिया एबी नाम दिया गया। 1896 में इडेस्टैम रिटायर हो गए और कंपनी का पूरा कारोबार मैकलीन के जिम्मे आ गया। कंपनी ने धीरे-धीरे अपना बिजनेस दूसरे सेक्टर में भी फैलाना शुरू किया। 1902 में कंपनी ने इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन में कदम रखा। कुछ साल बाद ही विश्वयुद्ध शुरू हो गया और कंपनी दिवालिया हो गई। इस कंपनी का अधिग्रहण फिनिक्स रबर कंपनी ने कर लिया। कंपनी स्वतंत्र तौर पर व्यापार करती रही, लेकिन 1967 में इन सारी कंपनियों को मिलाकर नोकिया कॉर्पोरेशन नाम दिया गया।

इसी दशक में नोकिया ने मिलिट्री और आम जनता के लिए मोबाइल रेडियो टेलीफोन के प्रोडक्शन में कदम रखा। 1987 में नोकिया ने दुनिया का पहला हैंडहेल्ड मोबाइल फोन लॉन्च किया। 5 हजार 456 डॉलर कीमत का ये फोन खूब बिका। 1988 में कंपनी के चेयरमैन कारी कायरोमो ने सुसाइड कर लिया। नए चेयरमैन ने डिसाइड किया कि कंपनी अपने सारे व्यापार बंद कर केवल टेलीकम्युनिकेशन मार्केट पर ही फोकस करेगी। 1991 में फिनलैंड के प्रधानमंत्री ने नोकिया के फोन से दुनिया की पहली जीएसएम कॉल की। अगले ही साल नोकिया-1011 मॉडल लान्च किया गया। कुछ ही सालों में नोकिया ने अपनी 2100 सीरीज लॉन्च की। इस सीरीज की बिक्री कंपनी की उम्मीदों से कहीं ज्यादा हुई। 1998 तक नोकिया दुनिया की टॉप टेलीकम्युनिकेशन कंपनी बन गई। अगले एक दशक तक कंपनी टेलीकम्युनिकेशन मार्केट की बादशाह बनी रही। 2007 में नोकिया के पास कुल टेलीकम्युनिकेशन मार्केट की 49 फीसदी हिस्सेदारी थी।

2007 के बाद से ही नोकिया के बुरे दिन शुरू हो गए। कंपनी ने आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के बजाय सिम्बियन को ही इस्तेमाल किया। ये नोकिया की सेल में गिरावट की एक बड़ी वजह बनी। कंपनी ने मार्केट में दोबारा लौटने की खासी कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई। नतीजा ये हुआ कि 03 सितंबर 2013 को माइक्रोसॉफ्ट ने 7.2 अरब डॉलर में नोकिया को खरीद लिया। इस सौदे के साथ ही नोकिया के प्रमुख स्टीफन ईलॉप समेत नोकिया का 32,000 लोगों का स्टाफ माइक्रोसॉफ्ट का स्टाफ बन गया।

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