इतिहास के पन्नों में 11 सितम्बर स्वामी विवेकानंद का वो भाषण, जब हॉल तालियों से गूंज उठा

देश-दुनिया के इतिहास में 11 सितंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारतीय मनीषी स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी भाषण के लिए खासतौर पर जानी जाती है। 1893 में 11 सितंबर को शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन हुआ था।

उसमें स्वामी विवेकानंद ने जैसे ही सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका कहकर अपना भाषण शुरू किया, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। यह पहला मौका था, जब पश्चिम का सामना पूरब के धर्माचार्य से हो रहा था। उस समय पश्चिमी देशों के सामने भारतीय संस्कृति और दर्शन नया-नया ही था। विवेकानंद के इस बहुचर्चित भाषण ने भारत की छवि को नया आयाम दिया।

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स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता और कट्टरता लंबे समय धरती को शिकंजे में जकड़े हुए है और इससे धरती पर हिंसा बढ़ गई है। कई बार धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है। न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। उन्होंने अपने भाषण में सहनशीलता और सार्वभौमिकता का मसला भी उठाया था।

इसके अलावा 1906 में दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एक नया कानून बनाया। इस कानून में भारतीय मूल के लोगों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया । जोहानिसबर्ग में 11 सितंबर को ही हुई भारतवंशियों की एक बैठक में इसका विरोध हुआ। इसमें गांधी जी ने विरोध के लिए अहिंसा का इस्तेमाल करने की पैरवी की। यह संघर्ष सात साल चला। दक्षिण अफ्रीका में भी उस समय अंग्रेजों का शासन था और उन्होंने हजारों भारतीयों को हड़ताल, रजिस्ट्रेशन से इनकार करने, रजिस्ट्रेशन कार्ड जलाने और प्रदर्शन करने के लिए जेल भेज दिया था।

इस तारीख को अमेरिका कभी नहीं भूल सकता। 11 सितंबर 2001को ही न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमला हुआ था। यहां करीब 18 हजार कर्मचारी रोज की तरह काम कर रहे थे। तभी आठ बजकर 46 मिनट पर जो हुआ, वो इंसानी सोच से बाहर का था। 19 आतंकियों ने चार विमान हाईजैक किए। दो विमान लेकर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टॉवरों से टकरा गए। इससे विमानों में सवार सभी लोग और बिल्डिंग में काम कर रहे कई लोग मारे गए। दो घंटे के अंदर दोनों टॉवर ढह गए। तीसरा विमान अमेरिकी रक्षा मंत्रालय यानी पेंटागन से टकराया, जबकि चौथा विमान शेंकविले के खेत में क्रैश हुआ।

मानव इतिहास में सबसे भीषण आतंकी हमले में 70 देशों के करीब 3000 लोग मारे गए। हाईजैकर्स में 15 सऊदी अरब के थे, जबकि बाकी यूएई, मिस्र और लेबनान के थे। इस हमले के बाद अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 2.5 करोड़ डॉलर का इनाम रखा गया। आखिरकार, दो मई 2011 को अमेरिका के सीक्रेट मिशन में पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपकर रह रहे लादेन को मार गिराया गया।

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