इतिहास के पन्नों में 28 सितम्बर : एलेक्जेंडर फ्लेमिंग की रिसर्च ने इलाज का तरीका बदला

देश-दुनिया के इतिहास में 28 सितंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख चिकित्सा विज्ञान के लिए मील का पत्थर है। यह 28 सितंबर, 1928 की बात है। स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक सर एलेक्जेंडर फ्लेमिंग अपनी लैब में काम कर रहे थे। एक प्रयोग के दौरान अचानक उन्हें एक फंगस दिखा। उस फंगस पर की गई रिसर्च ने पूरी दुनिया में इलाज के तरीके को बदलकर रख दिया। दरअसल सर फ्लेमिंग की उस रिसर्च से ही दुनिया को पहली एंटीबायोटिक मेडिसिन पेनिसिलिन मिली।

एलेक्जेंडर फ्लेमिंग के इस आविष्कार को 20वीं सदी के सबसे बड़े इन्वेंशन में गिना जाता है। छह अगस्त, 1881 को स्कॉटलैंड में जन्मे एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1906 में सेंट मैरी हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल से डिग्री ली। इसके बाद रॉयल आर्मी मेडिकल कॉर्प्स में चले गए। पहले विश्वयुद्ध के बाद 1928 में वे फिर सेंट मैरी मेडिकल स्कूल लौट आए। यहीं उन्होंने पेनिसिलिन की खोज की।

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फ्लेमिंग अपनी रिसर्च के लिए एक पेट्री डिश इस्तेमाल कर रहे थे। एक दिन उन्होंने देखा कि उस डिश में पड़ी जैली में फंगस (फफूंद) लग गई थी। जहां पर भी ये फंगस थी, वहां सभी बैक्टीरिया मर गए थे। रिसर्च करने पर पता चला कि फफूंद पेनिसिलियम नोटाटम थी। अचानक हुई इस घटना को फ्लेमिंग ने कई बार दोहराया। सबसे पहले उन्होंने पेनिसिलियम की उस दुर्लभ किस्म को उगाया। फिर इस फंगस से निकाले गए रस को बैक्टीरिया पर डालकर देखा। इससे उन्होंने पता लगाया कि फंगस से निकले रस से बैक्टीरिया मर जाते हैं।

पेनिसिलिन ही दुनिया का पहला एंटीबायोटिक है। इसे डॉक्टरों ने इंसानों को होने वाली कई संक्रामक बीमारियों के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए प्रयोग किया। इस एंटीबायोटिक का इस्तेमाल आज भी बड़े पैमाने पर होता है।

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