संस्मरण
प्रथम बार मैंने उन्हें 1984 के लोकसभा चुनाव के दौरान देखा था, तब वो कोलकाता उत्तर पश्चिम से भाजपा उम्मीदवार थे। 5 वर्ष उपरांत, 1989 के लोकसभा चुनाव से संगठन के सक्रिय भूमिका में मैं आया एवं उनके स्नेह के छांव में मेरी राजनीतिक यात्रा आरंभ हुई।
लम्बे समय तक वह बंगाल भाजपा की चुनाव समिति के चेयरमैन रहे व इसके अतिरिक्त भी संगठन के अन्य महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया।
दुर्गा प्रसाद नाथानी जी मारवाड़ी मूल के व्यवसायी थे लेकिन राजनीति उनका जुनून था। गैर-बंगाली होने के उपरांत भी वो बांग्ला भाषा व बंगाल की राजनीति को गहराई से समझते थे। राजनीति विषयों पर उनकी पकड़ इतनी अच्छी थी कि वे सबको सहजता से समझाने में सक्षम थे। वे लागातार राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में अध्ययन करते, नोट्स बनाते एवं सभी नेता-कर्मियों को भेजते थे।
इनका अधिकांश जीवन गिरीश पार्क के निकट बीता, हालांकि कुछ वर्षों से वो सॉल्टलेक व लेकटाउन में रह रहे थे।
कई केन्द्रीय नेताओं के साथ आत्मीय सम्पर्क होने के उपरांत भी उनका स्वभाव सरल बना रहा। संगठन में नया होते हुए भी मैंने उनके स्वभाव में अहंकार की झलक नहीं देखी।
वर्ष 2009 लोकसभा चुनाव के समय का एक प्रसंग है, तब वर्तमान में प्रदेश मुख्यालय, 6 मुरलीधर सेन लेन स्थित प्रदेश बीजेपी मुख्यालय के मीडिया विभाग का कार्यालय दुर्गा प्रसाद नाथानी जी कक्ष हुआ करता था। इसी कक्ष में मेरा उनके साथ मतविरोध हुआ था, मैंने भले अपना संयम खो दिया परन्तु वो अत्यंत संयमित रहे। इस घटना की खबर मिलने पर तत्कालीन प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सत्यब्रत मुखोपाध्याय ने दुर्गा प्रसाद जी से कहा कि घटना की लिखित विवरण मिलने की स्थिति में वो मुझे दल से बहिष्कृत करेंगे। इस संदर्भ में दुर्गा प्रसाद जी का मर्मस्पर्शी उत्तर था, ”रितेश प्रदेश समिति का सदस्य है और मैं चुनाव समिति का चैयरमैन, यह प्रश्न करना उसके अधिकार क्षेत्र में है। उसने किसी भी रूप में संगठन के नियम से बाहर जाकर कार्य नहीं किया है ” उनके इस उत्तर से जुलु दा (सत्यब्रत मुखोपाध्याय) सहित कई तत्कालीन नेता निःशब्द हो गए। ऐसे स्पष्टवादी थे पार्टी के समर्पित नेता दुर्गा प्रसाद नाथानी।
वो भारतीय सनसंघ से लेकर भाजपा के महत्वपूर्ण पदों पर रहे थे। वे कोलकाता म्युनिसिपल कारपोरेशन में भाजपा पार्षद थे। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में वो हावड़ा से भाजपा उम्मीदवार थे और 1984 में कोलकता उत्तर पश्चिम से लोकसभा चुनाव लड़ते हुए उन्होंने 22.08% मत प्राप्त किया था। 1987 में जोड़ासांकू विधानसभा केंद्र से उन्होंने जीवन का अंतिम चुनाव लड़ा।
ध्रुवीय राजनीति के मध्य भाजपा का उत्थान रातों-रात नहीं हुआ। आज बीजेपी की इस सफलता के पीछे नाथानी जी जैसे नेताओं का अमूल्य योगदान है। भाजपा के उत्थान में ढेरों नेता कर्मियों का खून-पसीना लगा है।
शारीरिक रूप से अस्वस्थ हूँ इसलिए उनकी अंतिम यात्रा में सम्मिलित नहीं हो सका इस बात की टीस है। नाथानी जी, अपने घर से ही आपको प्रणाम भेज रहा हूँ, आप जहाँ भी रहें, अच्छे रहें।