पुण्यतिथि पर विशेष : छोटे कद के विशाल व्यक्तित्व थे लाल बहादुर शास्त्री

भारत में कई प्रधानमंत्रियों ने देश की दिशा को बदलने का काम किया है। लाल बहादुर शास्त्री भी ऐसे ही प्रधानमंत्री थे। उनके दौर में देश ने बदलावों का एक दौर देखा और कई सारे बदलावों की नींव भी देखी। उन्होंने जब नेहरू युग के अंत के बाद देश की बागडोर संभाली तब देश तो बदलाव के दौर से गुजर ही रहा था, देश को कई स्तरों पर बदलावों की जरूरत भी थी। जब पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ हमला किया, तब उन्होंने देश का बहुत अच्छे से नेतृत्व किया और देश की कई समस्याओं को सुलझाने के लिए रास्ते सुझाए। आज, 11 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि है।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे जो बाद में राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी करने लगे थे। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण लाल बहादुर को नन्हें कह कर बुलाया जाता था। डेढ़ साल की उम्र में उनके पिता का निधन और फिर कुछ समय बाद नाना के निधन के बाद उनके मौसा ने उनका लालन पालन किया। काशी विद्यापीठ में शिक्षा के दौरान उन्होंने अपने नाम में श्रीवास्तव हटा कर शास्त्री कर लिया था।

27 मई, 1964 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री को उनका उत्तराधिकारी चुना गया और 9 जून, 1964 को उन्होंने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। 1962 में चीन के साथ युद्ध में हार के बाद नेहरू बहुत निराश हुए थे जिसका उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर हुआ था। नेहरू के निधन के एक साल के भीतर ही पाकिस्तान ने भारत के बुरे हालात का फायदा उठाना चाहा और वर्ष 1965 में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
1965 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के हमले का करारा जवाब देते हुए लाहौर तक घुसपैठ कर ली थी। ताशकंद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अयूब खान और लाल बहादुर शास्त्री ने युद्ध खत्म करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके बाद ताशकंद में ही 11 जनवरी, 1966 को शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

उन्होंने ही ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था।

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