ध्रुव सेन सिंह
अपने देश भारत में पृथ्वी को माँ का दर्जा दिया गया। इसके संवर्धन के बिना जीवन संभव नहीं है। मानव जबसे पृथ्वी पर आया है, विकास और आधुनिकता के चलते उसने पृथ्वी के प्रत्येक घटकों में कुछ ना कुछ परिवर्तन किया है जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी की प्रकृति और उसका पर्यावरण लगातार बदलता जा रहा है। यह बदलाव मानव जनित कारणों से भी होता है तथा यह बदलाव प्राकृतिक कारणों से भी होता है।
पूरे समाज को जागरूक करने के लिए तथा पृथ्वी के पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए पहली बार 5 जून, 1972 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में 119 देशों का सम्मेलन हुआ जिसमें सारे देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में पर्यावरण के संरक्षण के लिए अपनी भूमिका के निर्वहन की बात स्वीकार की। तब से हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने के लिए कुछ न कुछ थीम देता रहा है। इस साल का थीम है- केवल एक पृथ्वी (प्रकृति के साथ सतत सद्भाव जरूरी है)। इस वर्ष पर्यावरण दिवस इसलिए विशेष है क्योंकि यह पर्यावरण दिवस का स्वर्ण जयंती वर्ष भी है। पिछले 50 वर्षों से हम 5 जून को हर वर्ष पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए संकल्प लेते हैं।
यूँ तो मानव भी प्रकृति का ही एक अंग है लेकिन आज अपनी सुख-सुविधाओं के लिए वह प्रकृति के सामने खड़ा है और वह विकास तथा आधुनिकता की सारी चीजों को पर्यावरण की कीमत पर प्राप्त करना चाहता है। आज प्रकृति और पर्यावरण को सबसे ज्यादा खतरा मानव से ही है।
आदिवासी सभ्यता से बाहर निकलकर मानव ने जब विकास की प्रक्रिया को प्रारंभ किया होगा तो सम्भवतः उसे यह एहसास भी नहीं रहा होगा कि इस अंधाधुंध विकास में वह अपनी ही सत्ता पर आघात कर रहा है, किंतु आज 2022 तक आते-आते उसे यह आभास हो गया है कि जिसे वह विकास समझ बैठा था वह तो अवसान का क्रमिक आमंत्रण था। पिछले कुछ सालों में हमने प्रकृति और पर्यावरण के सारे घटकों जलमंडल, स्थलमंडल और वायुमंडल को प्रदूषित कर अंसतुलित कर दिया है। जब जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारण अपना प्रतिकूल असर दिखा रहे हों तो हमें मानव जनित कारणों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि हम अपनी पृथ्वी को संरक्षित रख सकें तथा जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभाव को कम कर सकें।
इस साल की ग्रीष्म ऋतु में भारत के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में कई चरणों में पड़ने वाली गर्मी और हीटवेब्स ने जनजीवन को असामान्य कर दिया है। ऐसा माना जाता है कि जब 2 दिनों से ज्यादा तापक्रम 40 डिग्री से ऊपर हो जाता है तो उसे हीटवेब्स कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग इस सदी की सबसे बड़ी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्या है। जलवायु परिवर्तन के एक्सट्रीम इवेंट्स ने समाज में भय का वातावरण बना रखा है। तेजी से बढ़ रहे नगरीकरण, वनों का खात्मा, जनसंख्या वृद्धि और अनियोजित विकास ने पर्यावरण जनित समस्याओं को और विकराल रूप प्रदान कर दिया है।
हीटवेब का मुख्य कारण प्राकृतिक भी है और मानव जनित भी। सुविधा भोगी दिनचर्या ने इसके प्रभाव को और बढ़ा दिया है। प्राकृतिक मुख्य कारणों में उच्च वायुदाब द्वारा गर्म हवा का नीचे की तरफ दबाया जाना, राजस्थान के रेगिस्तान में प्रति चक्रवात का बनना, मई-जून के महीनों में सूर्य के किरणों की लंबी अवधि होना तथा प्रति चक्रवात के कारण पश्चिमी विक्षोभ का प्रवेश न कर पाना है। जबकि मानव जनित कारणों में नगरीकरण, जल स्रोतों की कमी, वनस्पतियों की कमी तथा कंक्रीट के जंगल की बढ़ोतरी है। यह हीटवेब 1981 से 90 के दशक में 413 दिन, 2010 से 2020 के दशक में 600 दिन रहा है, 2020 से 2030 के दशक में इसके 700 दिन से ऊपर रहने की संभावना है। नगरों के विकास एवं आधुनिकता में अगर हमने प्राकृतिक नियमों और वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी की तो आने वाले दिनों में मौसम और जलवायु के और ज्यादा असामान्य व्यवहार देखने को मिलेंगे।
(लेखक, लखनऊ विवि में भूविज्ञान विभाग के प्राध्यापक हैं।)