माकपा के नेतृत्व में बदलाव की अटकलें तेज

कोलकाता : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) अगले महीने तमिलनाडु के मदुरै में अपना 24वां पार्टी कांग्रेस आयोजित करने जा रही है। इस महत्वपूर्ण आयोजन से पहले पार्टी के पोलित ब्यूरो में बड़े बदलाव की अटकलें तेज हो गई हैं।

माना जा रहा है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में कुछ वरिष्ठ नेताओं की जगह नए चेहरे शामिल किए जा सकते हैं। साथ ही, इस कांग्रेस के समापन के बाद पूर्व महासचिव सीताराम येचुरी के उत्तराधिकारी की घोषणा भी होगी। पिछले वर्ष उनके असामयिक निधन के बाद से यह पद रिक्त है।

फिलहाल, माकपा के पोलित ब्यूरो में एक सीट येचुरी के निधन के कारण खाली है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि पार्टी के आंतरिक नियमों के चलते सात अन्य वरिष्ठ नेताओं की सीटें भी खाली हो सकती हैं। जिन नेताओं के पद रिक्त होने की संभावना जताई जा रही है, उनमें पूर्व महासचिव और वर्तमान अंतरिम समन्वयक प्रकाश करात, वरिष्ठ नेता बृंदा करात, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्य सचिव डॉ. सूर्यकांत मिश्रा शामिल हैं।

हालांकि, पिनाराई विजयन का मामला थोड़ा अलग बताया जा रहा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री पद पर होने के कारण उन्हें पोलित ब्यूरो में ‘विशेष आमंत्रित सदस्य’ के रूप में बनाए रखा जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो यह एक असामान्य निर्णय होगा क्योंकि आमतौर पर विशेष आमंत्रित सदस्य केवल केंद्रीय समिति में होते हैं, पोलित ब्यूरो में नहीं।

त्रिपुरा में माणिक सरकार के उत्तराधिकारी के रूप में किसे चुना जाए, इस पर गहरी उत्सुकता है। इसी तरह, पश्चिम बंगाल से सूर्यकांत मिश्रा के स्थान पर किसे पोलित ब्यूरो में लाया जाएगा, यह भी महत्वपूर्ण सवाल है।

पार्टी की राजनीतिक स्थिति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। केरल में मुख्य मुकाबला माकपा के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) के बीच रहता है। लेकिन पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में माकपा-कांग्रेस के बीच चुनावी समझौते पहले देखे गए हैं।

पश्चिम बंगाल में पार्टी नेतृत्व 2026 के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से किसी भी गठबंधन के बिना स्वतंत्र रूप से लड़ने की तैयारी कर रहा है। माकपा की केंद्रीय समिति पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ‘स्वतंत्र लाइन’ अपनानी चाहिए और चुनावी गठबंधनों से दूरी बनाए रखनी चाहिए।

माकपा ने फरवरी में अपनी 24वीं पार्टी कांग्रेस के लिए जो राजनीतिक मसौदा प्रस्ताव जारी किया था, उसमें इस स्वतंत्र रणनीति पर जोर दिया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि “चुनावी समझौतों या गठबंधनों के नाम पर हमारी स्वतंत्र पहचान को धूमिल नहीं होने दिया जाना चाहिए।”

पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा को लेकर पार्टी के पुनर्गठन और विस्तार की रणनीति पर विशेष ध्यान दिया गया है।

पश्चिम बंगाल को लेकर प्रस्ताव में कहा गया है, “पार्टी की ताकत में उल्लेखनीय वृद्धि के लिए पार्टी के पुनर्गठन और विस्तार की आवश्यकता है, विशेष रूप से ग्रामीण गरीबों के बीच काम करने और उन्हें संगठित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पार्टी को भाजपा के खिलाफ वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष तेज करना होगा, जबकि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों का विरोध करना होगा।”

जैसे-जैसे पार्टी कांग्रेस नजदीक आ रही है, राजनीतिक हलकों की नजरें इस पर टिकी हैं कि माकपा का शीर्ष नेतृत्व पोलित ब्यूरो में किन चेहरों को शामिल करता है और पार्टी की चुनावी रणनीति को किस दिशा में ले जाता है।

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