नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल के संदेशखाली मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जरूरत नहीं है। हाई कोर्ट पहले ही संज्ञान ले चुका है। याचिकाकर्ता को वहीं अपनी बात रखनी चाहिए।
जस्टिस नागरत्ना ने याचिकाकर्ता और वकील अलख आलोक श्रीवास्तव से कहा कि आप कलकत्ता हाई कोर्ट जाकर सीबीआई जांच की मांग कर सकते हैं। हम इस मामले में क्यों दखल दें। हम मामले की सुनवाई क्यों करें। तब श्रीवास्तव ने कहा कि वहां ज्यादातर पीड़ित अनुसूचित जाति के हैं। उन्होंने कहा कि मामले का ट्रांसफर पश्चिम बंगाल के बाहर करने की भी मांग कर रहा हूं। वहां की परिस्थिति बेहद खराब है। इसलिए मामले का ट्रांसफर पश्चिम बंगाल के बाहर किया जाए। श्रीवास्तव ने कहा कि हाई कोर्ट के संज्ञान लेने के एक दिन बाद राज्य की मुख्यमंत्री ने बयान दिया था कि वहां कोई रेप नहीं हुआ है। यहां का मामला भी बिलकुल मणिपुर की तरह है। तब जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि इस मामले की तुलना मणिपुर मामले से न करें। हम आपको इस बात की इजाजत देंगे कि आप हाई कोर्ट की सुनवाई में अर्जी दाखिल कर शामिल हो सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के पास भी एसआईटी गठित करने का अधिकार है। ऐसे में हाई कोर्ट को ही इसे तय करने दीजिए। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट में मामला लंबित है। ऐसे में देखते है कि हाई कोर्ट क्या करता है। सुनवाई के दौरान श्रीवास्तव ने संदेशखाली में तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख का जिक्र करते हुए कहा कि यह वही नेता हैं, जिनके यहां छापा मारने गए ईडी के अधिकारियों पर हमला किया गया था। कोर्ट ने पूछा कि हाई कोर्ट पहले से ही मामले की सुनवाई कर रहा है। ऐसे में दो अलग-अलग फोरम पर मामला क्यों चले।
अलख आलोक श्रीवास्तव ने याचिका दायर कर संदेशखाली हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा देने और इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। याचिका में इस मामले का ट्रायल पश्चिम बंगाल से बाहर कराने की मांग की गई थी। इसके अलावा इस मामले की जांच वैसी ही करने की मांग की गई थी, जैसे मणिपुर हिंसा मामले की जांच तीन जजों की कमेटी ने की, वैसे ही इसकी भी जांच का आदेश दिया जाए।