नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज की सुनवाई पूरी कर ली है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले पर कल यानी 21 मई को भी सुनवाई करेगी।
आज सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ काउंसिल्स में गैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्मस्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है। अगर आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं, तो यहां क्यों नहीं। सिब्बल ने कहा कि अगर आप 14 राज्यों के वक्फ बोर्ड को देखें तो सभी सदस्य मनोनीत हैं, कोई चुनाव नहीं होता। सिब्बल ने कहा कि जिस तरह शैक्षणिक संस्थानों को प्रबंधन का अधिकार है, उसी तरह धार्मिक संस्थानों को भी अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है। सिब्बल ने कहा वक्फ का निर्माण ही धर्मनिरपेक्ष कार्य नहीं है। यह मुसलमानों की संपत्ति है।
सिब्बल ने कहा कि अगर वक़्फ़ संपत्ति को लेकर कोई विवाद हुआ तो क्या होगा। जब तक संपत्ति रजिस्टर्ड नहीं हो जाती तब तक मुकदमा भी दायर नहीं किया जा सकता। मुकदमा दायर करने का अधिकार भी छीन लिया गया है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले के कानून में भी रजिस्ट्रेशन का प्रावधान था, इसलिए इस संशोधन से पहले रजिस्टर्ड सभी वक्फ इससे प्रभावित नहीं होंगे। वक्फ काउंसिल में गैर मुस्लिम सदस्यों के प्रावधान पर सिब्बल ने कहा कि पहले इसमें केवल मुसलमान सदस्य थे और अब इसमें बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम हैं।
सिब्बल ने कहा कि यह सभी आपस में जुड़े हुए प्रावधान हैं। ये संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए किया गया है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के बिना। सिब्बल ने कहा कि नए क़ानून में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई वक्फ संपत्ति एएसआई संरक्षित घोषित कर दी जाती है, तो वह वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी। संभल की जामा मस्जिद ऐसी ही वफ्फ संपत्ति है, यह बहुत परेशान करने वाली बात है।
आज सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से आग्रह किया कि पहले से तय केवल तीन बिंदुओं पर कोर्ट विचार करे। तब सिब्बल ने कहा कि मामले की विस्तृत सुनवाई होनी चाहिए और कोर्ट को केवल तीन बिंदुओं पर ही विचार नहीं करना चाहिए। सिब्बल की इस दलील का वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी समर्थन किया, क्योंकि ये वक्फ संपत्तियों पर कब्जे का मामला है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि ये संशोधन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि वक्फ कानून में संशोधन संपत्तियों के धर्मनिरपेक्ष प्रबंधन के लिए है। केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि वक्फ संशोधन कानून किसी भी तरह से संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं करता है। ये संशोधन सरकार के कार्यक्षेत्र के तहत किया गया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि जो संपत्तियां पहले से वक्फ के रुप में रजिस्टर्ड हैं उन्हें बाय यूजर के प्रावधान से कोई असर नहीं पड़ेगा। ये ग़लत नैरेटिव फैलाया जा रहा है कि इससे सदियों पुराने वक्फ संपत्तियों पर असर पड़ेगा।
इससे पहले 17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि वक्फ संशोधन कानून के विवादित प्रावधान फिलहाल लागू नहीं होंगे। यानी फिलहाल इस कानून पर यथास्थिति बनी रहेगी। तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार के बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि क्या 1995 के कानून के तहत जो संपत्तियां वक्फ में रजिस्टर्ड हैं, उन पर अभी कोई कार्रवाई नहीं होगी। तब मेहता ने जवाब दिया था कि यह बात खुद कानून में शामिल हैं। तब कोर्ट ने कहा था कि ठीक है, लेकिन फिलहाल वक्फ बोर्ड या वक्फ काउंसिल में कोई नई नियुक्ति न की जाए। कोर्ट ने कहा था कि हमारे सामने जो स्थिति है उसके आधार पर हम आगे बढ़ रहे हैं। हम नहीं चाहते कि स्थिति पूरी तरह से बदल जाए, हम कानून पर रोक नहीं लगा रहे हैं।