किशनगंज : लोक आस्था का महापर्व छठ 17 नवंबर से शुरू हो रहा है। गुरुवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि चार दिन तक चलने वाली छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन व्रती गंगा स्नान करने के बाद पूजा करती हैं। इसके बाद मिट्टी के चूल्हे पर अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद बनाती हैं। नहाय-खाय के दिन कद्दू खाने का खास महत्व है। इसे व्रती सहित परिवार के सभी सदस्य प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। प्रसाद तैयार करते समय शुद्धता का विशेष तौर पर ख्याल रखा जाता है।
गुरु साकेत ने बताया कि नहाय खाय के दिन कद्दू खाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। इस दिन प्रसाद के रूप में कद्दू-भात ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे निर्जला उपवास पर रहती हैं। कद्दू को इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर खाया जाता है जो व्रतियों को 36 घंटे के उपवास में मदद करता है। कद्दू खाने से शरीर को अनेक प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं। इसमें पानी की भी अच्छी-खासी मात्रा होती है। साथ ही पर्याप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है। कद्दू हमारे शरीर में शुगर लेवल को भी मेंटेन रखता है। इस प्रकार व्रतियों के लिए निर्जला उपवास करने में कद्दू मददगार साबित होता है।
गौर करे कि छठ पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। गुरु साकेत ने बताया कि इस बार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर से होगी और 20 नवंबर को इसका समापन होगा। छठ पूजा के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। लोक आस्था का यह त्योहार सबसे ज्यादा- बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के साथ अब पूरे देश में मनाया जाता है। साथ ही इसे पड़ोसी देश नेपाल के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। छठ पूजा का पर्व संतान के लिए रखा जाता है।