कोलकाता : राज्य के डॉक्टरों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों और मुख्य सचिव मनोज पंत के बीच सोमवार को बैठक हुई। बैठक से डॉक्टरों को निराशा हाथ लगी। स्वास्थ्य भवन में हुई इस बैठक में राज्य सरकार की ओर से 10 सूत्री मांगों पर कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिला, जिससे डॉक्टरों में असंतोष बना हुआ है।
जूनियर डॉक्टरों ने बैठक में अपने प्रतिनिधियों को आमंत्रित नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई। जूनियर डॉक्टरों के प्रतिनिधि देवाशीष हालदार ने कहा कि हमारे बिना इस बैठक का कोई मतलब नहीं है। हम लंबे समय से आंदोलन और अनशन कर रहे हैं, लेकिन हमें बातचीत में शामिल नहीं किया गया। इस बैठक के सफल होने की उम्मीद नहीं है।
बैठक में स्वास्थ्य सचिव नारायण स्वरूप निगम की अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय रही। आंदोलनकारी डॉक्टरों ने बैठक में स्वास्थ्य सचिव के इस्तीफे की मांग उठाई। सूत्रों के अनुसार, बैठक में मौजूद संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी सचिव की अनुपस्थिति पर आपत्ति जताई।
बैठक में एक अन्य मुद्दा श्रीरामपुर के विधायक और तृणमूल नेता सुदीप्त रॉय से जुड़ा रहा। सुदीप्त रॉय वर्तमान में राज्य स्वास्थ्य भर्ती बोर्ड के सदस्य हैं और पूर्व में आरजी कर अस्पताल के रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। डॉक्टरों ने उन्हें स्वास्थ्य प्रशासन से हटाने की मांग की।
आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) की राज्य शाखा के संयुक्त सचिव रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि वे जूनियर डॉक्टरों की 10 सूत्री मांगों का समर्थन करते हैं। उन्होंने बताया कि अनशन पर बैठे जूनियर डॉक्टरों की हालत गंभीर होती जा रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी।
बैठक में दक्षिण कोलकाता के एक पूजा मंडप में आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए नौ प्रदर्शनकारियों का मुद्दा भी उठाया गया। इन नौ लोगों को बाद में हाई कोर्ट से जमानत मिली थी।
12 संगठनों के प्रतिनिधियों ने लिया हिस्सा
इस बैठक में 12 डॉक्टर संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए, जिनमें प्रत्येक संगठन से दो सदस्य मौजूद रहे। बैठक की शुरुआत सोमवार दोपहर करीब पौने एक बजे स्वास्थ्य भवन में हुई, जहां मुख्य सचिव मनोज पंथ और गृह सचिव नंदिनी चक्रवर्ती भी उपस्थित रहे।
संगठनों ने सरकार से जल्द कार्रवाई की उम्मीद जताई है, लेकिन बैठक के नतीजे से फिलहाल डॉक्टर समुदाय में निराशा बनी हुई है। आंदोलनरत डॉक्टर अपने संघर्ष को जारी रखने की बात कह रहे हैं, जब तक कि उनकी मांगें पूरी नहीं की जाती।