कोलकाता : अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन पर पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने शोक जताया और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।
समाज की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में मीडिया प्रभारी श्रेया जायसवाल ने कहा, ‘ पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा के बिना भोजपुरी के आधुनिक दौर की कल्पना सम्भव नहीं है, उनके भोजपुरी लोकगीतों ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का इतिहास रचा। जैसे बंगाल में दुर्गापूजा की शुरुआत बीरेंद्र कृष्ण भद्र के चंडीपाठ से होती है, वर्ष 1931 से आकाशवाणी से उनके चंडीपाठ का सिलसिला आज तक जारी है।जिस तरह बंगाल में दुर्गापूजा और बीरेंद्र कृष्ण भद्र एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं, उसी तरह शारदा सिन्हा के लोकगीतों के बिना बिहार और छठ की कल्पना सम्भव नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘शारदा सिन्हा के लोकगीतों को इतिहास इसलिए भी याद करेगा कि जो हिंदी भाषी प्रदेश अंग्रेजी साम्राज्यवाद से एकजुट होकर लड़ा था। कबीर से लेकर अस्सी के दशक तक गोरख पाण्डेय के भोजपुरी गीतों में सामंतवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष की आवाजें गूँजती रही, उसी भोजपुरी क्षेत्र की सांस्कृतिक चेतना को कुंद करने के लिए भोजपुरी के अश्लील गीतों के माध्यम से सबसे ज्यादा हमला अस्सी के दशक के बाद से शुरू हुआ। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी लोकगीतों के माध्यम से अश्लीलता के खिलाफ संघर्ष किया। यह समय शारदा सिन्हा के भोजपुरी गायन से जुड़ा है।
शारदा सिन्हा का होना असम्भव की यात्रा से गुजरना है।उनके लोकगीतों में लोकजीवन की धड़कनों, उसके सुख-दु:ख, संघर्ष और उल्लास की आवाजें गूँजती हैं। वे हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन अपने लोकगीतों के माध्यम से वे सदियों तक जीवित रहेंगी।’