व्हाट्सऐप को दिल्ली हाईकोर्ट से झटका, प्राइवेसी पॉलिसी की जांच पर रोक से इनकार

नयी दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने व्हाट्सऐप की नई प्राइवेसी पॉलिसी की प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने जांच को चुनौती देने वाली व्हाट्सऐप और उसकी मूल कंपनी फेसबुक (मेटा) की याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

कोर्ट ने 25 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान मेटा ने कहा था कि प्रतिस्पर्धा आयोग फेसबुक की केवल इस आधार पर जांच नहीं कर सकती है कि उसका व्हाट्सऐप पर भी मालिकाना हक है। मेटा की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि मेटा का मालिकाना अधिकार व्हाट्सऐप पर है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि प्रतिस्पर्धा आयोग निजता के सवाल पर जांच करे। उन्होंने कहा था कि फेसबुक ने 2014 में व्हाट्सऐप को अधिगृहीत किया था। भले ही मेटा का फेसबुक और व्हाट्सऐप पर मालिकाना हक है लेकिन दोनों उपक्रमों के रास्ते अलग हैं और उनकी नीतियां भी अलग हैं। रोहतगी ने कहा था कि फेसबुक के खिलाफ कुछ नहीं मिला है। स्वत: संज्ञान लेकर नोटिस जारी किया गया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट 2016 और 2021 के प्राइवेसी पॉलिसी की पड़ताल कर रही है। ऐसे में किसी प्राधिकार को जांच करने का कोई मतलब नहीं बनता है।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने फेसबुक (मेटा) की प्राइवेसी पॉलिसी पर चिंता जताते हुए कहा था कि सोशल मीडिया कंपनियों की ओर से यूजर की निजी जानकारी शेयर करने के मामले की पड़ताल की जरूरत है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि लोग अपनी प्राइवेसी को लेकर चिंतित हैं और अधिकतर तो ये तक नहीं जानते कि उनका डाटा सोशल मीडिया दिग्गजों की ओर से तीसरे पक्ष को शेयर किया जा रहा है। कोर्ट ने कैंब्रिज एनालाइटिका का उदाहरण देते हुए यूजर्स के डाटा शेयर करने पर चिंता जताई।

केंद्र सरकार ने हलफनामा के जरिये नए आईटी रूल्स का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा था कि आईटी रूल्स के रुल 4(2) के तहत ट्रेसेबिलिटी का प्रावधान वैधानिक है। केंद्र सरकार ने कहा था कि वो चाहती है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स यूजर की प्राइवेसी और एंक्रिप्शन की सुरक्षा करें। केंद्र सरकार ने कहा कि रूल 4(2) यूजर की प्राइवेसी को प्रभावित नहीं करता है। लोगों की निजता की सुरक्षा के लिए सामूहिक सुरक्षा की जरूरत है। केंद्र सरकार ने सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए इन आईटी रूल्स को लागू किया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि आईटी रूल्स को चुनौती देने वाले व्हाट्सऐप और फेसबुक की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। केंद्र ने कहा है कि व्हाट्सऐप और फेसबुक दोनों विदेशी कंपनियां हैं, इसलिए उन्हें संविधान की धारा 32 और 226 का लाभ नहीं दिया जा सकता है।

27 अगस्त, 2021 को हाई कोर्ट ने व्हाट्सऐप और फेसबुक की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। फेसबुक की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने आईटी रूल्स में ट्रेसेबिलिटी के प्रावधान का विरोध करते हुए कहा था कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। 9 जुलाई, 2021 को व्हाट्सऐप ने कोर्ट को बताया था कि वो अपनी नई प्राइवेसी पॉलिसी को फिलहाल स्थगित रखेगा। व्हाट्सऐप की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कोर्ट को बताया था कि जब तक डाटा प्रोटेक्शन बिल नहीं आ जाता तब तक उसकी नई प्राइवेसी पॉलिसी लागू नहीं की जाएगी।

22 अप्रैल, 2021 को जस्टिस नवीन चावला के सिंगल बेंच ने व्हाट्स ऐप और फेसबुक की याचिका खारिज कर दिया था। इस आदेश को दोनों कंपनियों ने डिवीजन बेंच के समक्ष चुनौती दी है। सिंगल बेंच के समक्ष सुनवाई के दौरान व्हाट्सऐप की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि व्हाट्सऐप की प्राइवेसी पॉलिसी पर प्रतिस्पर्द्धा आयोग को आदेश देने का क्षेत्राधिकार नहीं है। इस मामले पर सरकार को फैसला लेना है। उन्होंने कहा था कि व्हाट्सऐप की नई प्राइवेसी पॉलिसी यूजर्स को ज्यादा पारदर्शिता उपलब्ध कराना है।

प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने कहा था कि ये मामला केवल प्राइवेसी तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये डाटा तक पहुंच चुका है। उन्होंने कहा था कि प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार के तहत आदेश दिया है। उन्होंने कहा था कि भले ही व्हाट्सऐप की इस नीति को प्राइवेसी पॉलिसी कहा गया है लेकिन इसे मार्केट में अपनी उपस्थिति का बेजा फायदा उठाने के लिए किया जा सकता है।

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