इतिहास के पन्नों में 08 अप्रैलः ‘बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत’

तारीख- 8 अप्रैल 1929, स्थान- दिल्ली सेंट्रल एसेंबली। वायसराय ने जैसे ही ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पेश किया, खचाखच भरे दर्शक दीर्घा से दो लोगों ने इंकलाब-जिंदाबाद का नारा बुलंद करते हुए सदन में बम फेंक दिया। पूरे भवन में अफरातफरी मच गई।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह (20) और बटुकेश्वर दत्त (18) ने ये बम फेंके थे लेकिन इस बात का ख्याल रखा कि इससे किसी को नुकसान न हो। बम फेंकने के बाद दोनों क्रांतिकारी भागने की बजाय खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। उन्होंने नारा बुलंद करते हुए कुछ पर्चे भी फेंके जिसमें लिखा था- “बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत पड़ती है।”

क्रांतिकारी ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ का विरोध कर रहे थे। ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ पहले ही पास किया जा चुका था, जिसमें मजदूरों द्वारा की जाने वाली हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगा दी गई थी। ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ में सरकार को संदिग्धों पर बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रखने का अधिकार दिया जाना था। दोनों बिल का मकसद अंग्रेजी सरकार के खिलाफ उठ रही आवाज दबाना था।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त असेंबली बम कांड में दोषी पाए गए। इसमें दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और बटुकेश्वर दत्त को काला पानी जेल भेज दिया गया। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सांडर्स की हत्या का भी दोषी माना गया। लोगों की नाराजगी के डर से ब्रिटिश सरकार ने 23- 24 मार्च 1931 की आधी रात को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी।

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