इतिहास के पन्नों में 14 अगस्तः भारत मां के आंसुओं से लिखी गई तारीख और बंटवारे की टीस

देश-दुनिया के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख का अहम स्थान है। भारत के आजादी के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख आंसुओं से लिखी गई है। यही वह तारीख है जब देश का विभाजन हुआ। 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को पृथक राष्ट्र घोषित कर दिया गया। इस विभाजन में न केवल भारतीय उप महाद्वीप के दो टुकड़े किए गए बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया। बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया। यह 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना। कहने को तो इसे देश का बंटवारा कहा गया लेकिन यह दिलों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था। भारत मां के सीने पर बंटवारे का यह जख्म सदियों तक रिसता रहेगा और आने वाली नस्लें तारीख के इस सबसे दर्दनाक और रक्तरंजित दिन की टीस महसूस करती रहेंगी।

शायद इसीलिए 14 अगस्त को भारतीय इतिहास का सबसे मुश्किल दिन कहा जाता है। इस एक दिन में भारत का भूगोल, समाज और संस्कृति सबका बंटवारा हो गया। पाकिस्तान 14 अगस्त को ही अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। यह भारत के लिए सबसे पेंचीदा दौर था। जिन परिवारों ने विभाजन का दर्द सहा है वो आज तक इसे नहीं भूल पाए हैं। सिर्फ एक फैसले की वजह से लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। अपनी जमीन जायदाद छोड़कर चले जाना पड़ा। लाखों लोग मकान-दुकान और संपत्ति से रातोंरात बेदखल होकर सड़क पर आ गए। भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी बीसवीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है।

आजादी के वक्त भारत की आबादी करीब 40 करोड़ थी। भारत को आजादी तो मिली लेकिन बंटवारे की कीमत पर। आजादी मिलने से काफी पहले से मुसलमान अपने लिए एक अलग मुल्क की मांग कर रहे थे।इनकी अगुआई मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे। हिंदू बहुल भारत में मुसलमानों की आबादी करीब एक चौथाई थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू बंटवारे के खिलाफ थे। जिन्ना की जिद ने अंग्रेजों को यहां से जाते-जाते एक लकीर खींच देने का मौका दे गई। ऐसी लकीर जो आज भी उथल-पुथल मचाती रहती है। सिर्फ इस लकीर की वजह से दुनिया ने सबसे बड़ा विस्थापन देखा। करीब 1.45 करोड़ लोग विस्थापित हुए।

बंटवारे के वक्त हुए दंगों में लाखों लोग मारे गए। जिन लोगों ने एकसाथ आजादी का सपना देखा, वो ही एक-दूसरे को मारने पर आमादा हो गए। सबसे ज्यादा दर्द महिलाओं ने झेला। उन्हें पुरुषों की लड़ाई में महिला होने की कीमत चुकानी पड़ी। दंगों में हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार और बदसलूकी हुई। इस पीड़ा को दिल्ली में रहने वाली सरला दत्त ने बयां किया था। सरला ने कहा था कि बंटवारे के वक्त उनकी उम्र महज 15 साल थी। उनके पिता जम्मू के रेडियो स्टेशन में संगीतकार के रूप में काम करते थे। बंटवारे के दंगों में उन्हें एक पाकिस्तानी सैनिक ने अगवा कर लिया। पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की बस्ती पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया। सरला के मुताबिक उनकी शादी जबरदस्ती मुसलमान सैनिक के भाई से करवा दी गई। उन्हें कुरान पढ़ने को दी गई। हिंदुस्तान में किसी मुस्लिम महिला के साथ अपराध की खबर आती तो वहां हिंदू महिलाओं को नंगा करके घुमाया जाता। महिलाएं ज्यादती की सबसे आसान शिकार बन गई थीं।

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