इतिहास के पन्नों में 29 दिसंबर: जिसने टेलीविजन की लोकप्रियता का नया व्याकरण गढ़ा

रामानंद सागर उर्फ चंद्रमौली चोपड़ा ने `रामायण’ बनाकर टेलीविजन की लोकप्रियता का नया व्याकरण गढ़ दिया। नतीजतन, रामानंद सागर ने कई फिल्में और टेलीविजन धारावाहिक किए हों लेकिन धारावाहिक `रामायण’ उनकी इकलौती पहचान बन गई। इस धारावाहिक ने रामानंद सागर को जैसे अमर कर दिया।

शुरू में `रामायण’ सीरियल को 45 मिनट के 52 एपिसोड तक चलाने की योजना थी लेकिन जब देखा गया कि इसके प्रसारण के समय गलियां सूनी और सड़कों पर पर कर्फ्यू जैसी शांति हो जाती है तो इसकी लोकप्रियता के कारण इसके एपिसोड की संख्या तीन बार बढ़ाई गई। आखिरकार यह 78 एपिसोड पर समाप्त हुआ।

29 दिसंबर 1917 को लाहौर के पास असल गुरुके में पैदा हुए रामानंद सागर के परदादा लाला शंकर दास चोपड़ा, देश के बंटवारे से पहले लाहौर से कश्मीर चले आए थे। हालांकि देश की आजादी के बाद कश्मीर पर जब पाकिस्तानी कबीलाइयों का हमला हुआ तो उनका परिवार एकबार फिर कश्मीर छोड़ने को विवश हो गया। कश्मीर पर कबाइली हमले के दौरान उड़ीसा के दो बार के मुख्यमंत्री और साहसी पायलट रहे बीजू पटनायक बचाव दल का जहाज उड़ा कर कश्मीर पहुंचे थे और रामानंद सागर परिवार सहित काफी संख्या में दूसरे लोगों को सकुशल वहां से निकाल लाए।

रामानंद को उनकी नानी ने गोद लिया था, जिनके कोई बेटा नहीं था, उस समय उनका नाम ‘चंद्रमौली चोपड़ा’ से बदल कर ‘रामानंद सागर’ कर दिया गया था। सागर ने दिन में चपरासी, ट्रक क्लीनर, साबुन विक्रेता, सुनार प्रशिक्षु आदि के रूप में काम किया और रात में पढ़ाई जारी रखी। वह 1942 में पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत और फारसी में स्वर्ण पदक विजेता थे।

1985 में सागर ने दादा दादी की कहानियां के साथ टेलीविजन की ओर रुख किया। उनके निर्देशन में बनी फिल्म रामायण का पहला एपिसोड 25 जनवरी 1987 को प्रसारित हुआ। उनके अगले टेली-धारावाहिक कृष्णा और लव कुश थे, जो उनके द्वारा निर्मित और निर्देशित दोनों थे। बाद में उन्होंने साईं बाबा का निर्देशन भी किया। सागर ने विक्रम और बेताल और अलिफ़ लैला जैसे फंतासी धारावाहिक भी बनाए। इससे पहले उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया। रामानंद सागर ने घूंघट, आरजू, प्रेम बंधन जैसी कई सुपरहिट फिल्मों का निर्देशन किया। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत पृथ्वी थिएटर में स्टेज मैनेजर के रूप में की थी। भारत सरकार ने रामानंद को 2000 में कला और सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया था। 12 दिसंबर 2005 को 87 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया।

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