कोलकाता : समाज के सर्वांगीण विकास के लिए बच्चों को सामाजिकता और नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने पर जोर दिया जाना चाहिए। ये बातें वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टीचर्स ट्रेंनिंग एजुकेशन प्लैनिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन की कुलपति डॉ. सोमा बनर्जी ने कहीं। कोरोना के समय एक दूसरे की मदद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि महामारी का काल हमारे लिए लिटमस टेस्ट के जैसा था। केरल के कोट्टायम में सीएमएल कॉलेज के 2020-21 बैच के वार्षिक स्नातक समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधन करते हुए उक्त बातें उन्होंने कहीं। बनर्जी ने कहा कि वे सेंट पॉल्स हाई स्कूल की छात्रा थीं। मिशनरी स्कूलों में पढ़ाई का क्या मूल्य होता है यह उन्हें पता है।
मिशनरी स्कूल और कॉलेज हमेशा अपने छात्रों को नैतिकता की शिक्षा देने पर जोर देते हैं। जो छात्र आज स्नातक हो रहे हैं वे भविष्य के चैंपियन हैं। कोरोना महामारी ने हमें सिखाया कि कैसे व्यक्ति और समाज एक-दूसरे के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। महामारी के बाद अब यह जरूरी हो गया है कि बच्चों में नैतिकता को और अधिक बढ़ावा दिया जाए ताकि वे मानवता को प्राथमिकता दें। महामारी के समय जब 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगा तो सभी के लिए यह अजीब बात थी। हालात ऐसे थे कि दूर से वर्चुअल जरिए से पठन-पाठन के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। लोग यह सोचते थे कि महामारी के गुजरने के बाद शिक्षा का क्या स्तर होगा और ऑनलाइन जरिए से पठन-पाठन कितना कारगर होगा। लेकिन हमने इस चुनौती को न केवल स्वीकार किया बल्कि बखूबी इसे पार भी किया है।
इससे पहले रेवरेंड चेरियन थॉमस, वाइस प्रिंसिपल डॉ. रेणु जैकब द्वारा स्वागत भाषण, प्रदीप प्रज्जलन, मध्य केरल सूबा के माननीय बिशप रेव डॉ. मलयिल साबू सहित कई अन्य लोगों ने संबोधन किया।
संयोग से, चर्च मिशनरी सोसाइटी ऑफ इंग्लैंड ने 1817 में इस शैक्षणिक संस्थान का निर्माण किया था। यह भारत के पहले कुछ कॉलेजों में से एक और पहला पश्चिमी शैली का कॉलेज होने के नाते, इसमें ज्ञान की खोज और छात्रवृत्ति की समृद्ध विरासत है। न केवल कोट्टायम या तत्कालीन त्रावणकोर राज्य, बल्कि पूरे केरल के छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दो शताब्दियों से अधिक समय तक यह कॉलेज मददगार बना है।