– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री विधानसभा चुनाव परिणाम के फौरन बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौर शुरू हुआ था। इसमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के लोगों की सहभागिता सामने आई थी। यह भी आरोप था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस हिंसा को रोकने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई। आरोप लगा कि सत्ता पक्ष अपने विरोधियों में भय का संचार करना चाहता था। यह राजनीति की कम्युनिस्ट शैली थी, जिसे तृणमूल ने अपना लिया। ऐसे में ममता बनर्जी की लखनऊ यात्रा चर्चा में रही। क्योंकि यहां विधानसभा चुनाव में कानून व्यवस्था को भी मुद्दा बनाया गया है। सत्तापक्ष इस मुद्दे पर पिछली सरकारों पर सवाल उठा रहा है। ममता बनर्जी लखनऊ में भाजपा को हराने की अपील करने आईं थीं। उधर, नई दिल्ली में पश्चिम बंगाल की खराब कानून व्यवस्था पर राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा गया।
लगातार तीसरा चुनाव जीतने के बाद तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के हौसले बुलंद हैं। पिछले कुछ समय में वह अनेक प्रदेशों की यात्रा कर चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में उन्होंने सपा के समर्थन में सभा को संबोधित किया। वह जानती हैं कि अन्य क्षेत्रीय नेताओं की तरह उनका असर भी अपने प्रदेश तक सीमित है। इस दायरे के बाहर ऐसे सभी नेताओं के लिए पहचान का संकट रहता है। इनके नाम पर मतदान करने वाला कोई नहीं होता है। ऐसे में ममता बनर्जी की सक्रियता दिलचस्प है। उनकी पूरी कवायद सपा या किसी अन्य पार्टी के लिए नहीं है। वह भाजपा विरोधी गठबंधन का नेतृत्व करना चाहती हैं। उनकी यह रणनीति अब किसी से छिपी नहीं है लेकिन ममता के सामने दोहरी चुनौती है। एक तो उनके शासन में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। दूसरा यह कि ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के बाहर के सभी लोगों को बाहरी बताया था। उनका यह कथन अब उन पर भारी पड़ रहा है। पुरूलिया से लोकसभा सदस्य ज्योतिर्मय सिंह महतो के नेतृत्व में भाजपा सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन में हुई इस मुलाकात में सांसदों ने कोविंद को एक पत्र सौंप कर कहा कि पूरे पश्चिम बंगाल में अराजकता और डर का माहौल है। राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। पश्चिम बंगाल के जंगल महल क्षेत्र में माओवादियों और अपराधियों की सक्रियता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो कि चिंता का विषय है।
ज्योतिर्मय सिंह महतो की ओर से लिखे इस पत्र में आगे कहा गया कि अपराधियों और नक्सलियों के छुपने के लिए जंगल महल एक सुरक्षित स्थान बन गया है। बावजूद राज्य सरकार और उसके आला अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा। महतो ने कहा कि उनके लोकसभा क्षेत्र पुरुलिया में कोल माफिया और रेत माफिया प्रशासन की शह पाकर खुले तौर पर अवैध कारोबार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद से ही अराजकता का माहौल है।
भाजपा सांसद ने राष्ट्रपति का ध्यान चुनाव बाद हुई हिंसा की ओर आकृष्ट करते हुए कहा कि जिन परिवारों ने भाजपा का समर्थन किया था। उन्हें चुनाव बाद हुई हिंसा में अपने प्रियजन को खोना पड़ा है। ज्योतिर्मय सिंह महतो ने कहा कि पश्चिम बंगाल के मौजूदा हालात पर आज पूरा देश चिंतित है और राज्य की एक बड़ी आबादी डर के माहौल में जी रही है।
भाजपा सांसदों ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था के मद्देनजर वह जल्द से जल्द ठोस कदम उठाएं। इसके पहले विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद वहां व्यापक हिंसा हुई थी। इसमें भाजपा समर्थक लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया था। पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा पर एक रिपोर्ट भी जारी हुई थी। यहां चुनाव के बाद से ही हिंसक गतिविधि चलती रही हैं। इसमें भाजपा का समर्थन करने वाले निशाने पर थे। हिंसक तत्वों को सत्तारूढ़ तृणमूल कॉंग्रेस का खुला समर्थन था। यही कारण था कि पुलिस व प्रशासन ऐसी घटनाओं को नजरन्दाज करता रहा। इससे हिंसक तत्वों का मनोबल बहुत बढ़ गया था। पीड़ित लोगों की पुलिस थानों में कोई सुनवाई नहीं थी। वस्तुतः यह हिंसा सुनियोजित थी। इसका उद्देश्य भाजपा समर्थकों में भय फैलाना था।
बंगाल में कम्युनिस्ट व कॉंग्रेस का सफाया हो गया। तृणमूल कॉंग्रेस के सीधे मुकाबले में भाजपा आ गई थी। यह सही है कि इस बार उसे सरकार बनाने का अवसर नहीं मिला, लेकिन उसे 73 सीटों का लाभ हुआ, 90 सीटों पर उसे मामूली अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी नन्दीग्राम से पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसे में सरकार बनाने के बाद भी तृणमूल कॉंग्रेस की चिंता बढ़ी थी। एक एजेंसी की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा के करीब 15 हजार मामले हुए। इनमें 50 लोगों की जान गई। 7 हजार से अधिक महिलाओं का उत्पीड़न हुआ। केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया कि कॉल फॉर जस्टिस नाम की एक संस्था ने सरकार को यह रिपोर्ट सौंपी है। इसमें दावा किया गया कि चुनाव नतीजों के बाद दो मई की रात से शुरू हुई हिंसा की वारदातें प्रदेशभर के गांवों और कस्बों में हुई हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पश्चिम बंगाल के सत्तापक्ष को इसके लिए जिम्मेदार बताया था। फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि पूरी हिंसा के दौरान बंगाल पुलिस पूरी तरह से मूकदर्शक बनी रही। जो लोग तृणमूल कांग्रेस को छोड़ कर अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए काम कर रहे थे, उनके आधार कार्ड और राशन कार्ड तक छीन लिए गए। ख़ास तौर में दलित व वनवासी महिलाओं और कमजोर लोगों को निशाना बनाया गया। गृह मंत्रालय की ओर से चुनाव बाद हिंसा पर बनाई गई फैक्ट फाइंडिंग कमिटी में सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके जस्टिस प्रमोद कोहली, केरल के पूर्व चीफ सेक्रेटरी आनंद बोस, कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त सचिव मदन गोपाल, आईसीएसआई के पूर्व अध्यक्ष निसार चंद अहमद और झारखंड की पूर्व डीजीपी निर्मल कौर शामिल थे। टीएमसी ने विधान सभा चुनाव में विजय मनाने से पहले ही विध्वंस की राजनीति शुरू की थी। ऐसी कोई घटना यदि भाजपा शासित राज्य में हो जाती तो तूफान खड़ा कर दिया जाता। जब बंगाल में दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के साथ हिंसा होती है तो मानवाधिकार कार्यकर्ता की आवाज भी नहीं निकलती। ऐसे तथाकथित मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को भी बेनकाब करना जरूरी है।